SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १९४) मार मार कर उनके चमडोंका पहाड बनानेका जिकर हो उन शास्त्रोंको कुशास्त्र कहना चाहिये कि अहिंसामय परमपवित्र जैनशास्त्रोंको ?. जिन लोगोंकी बुद्धिका इतना* विपर्यय हो गया हो कि, सुन्नेको पीतल और पीललको सुन्ना कहे उनके वचन पर विश्वास करना अकलमंदोंका काम नहीं. प्रायशः ब्राह्मणलोगोंने अपना स्वार्थ सिद्ध करनेके लिये ही ब्राह्मणग्रंथ बनायें हैं. जैनग्रंथ परमार्थमार्गको दिखाते हैं. इन ग्रंथोंके पढनेसे विवेकचक्षु प्रफुल्लित होने पर लोग हमारी पोल देख न ले इस लिये उन्होंने जैनमतके लिये बूरा भला लिख कर लोगोंको उस सत्यमार्गसे वंचित रक्खा है. देखो उनके स्वार्थपोषक कथनका नमूना-- वराहपुराण-अगस्त्यगीता सुशान्तिवत नामके ६० वे अध्यायमें लिखा है कि " एवं संवत्सरस्यान्ते, ब्राह्मणान् भोजयेत् ततः।" भावार्थ इस प्रकार सुशांतिव्रत करके वर्षकी अंतमें ब्राह्मणों को जोमाना चाहिये । इत्यादि अनेक अध्याय इस वराहपुराणमें लिखें हैं, उनमें प्रायः करके अमुक व्रत करके * देखो उनकी बुद्धिविर्ययका नमुना-शिवपुराणमें गणपतिकी उत्पत्ति पार्वती के मेलसे लिखी हैं और वराहपुराग २२ वे अध्यायमें पेष्ठिक मुखसे लिखी है और लिखा है कि, उसके रूपको देख हित हो गई, जिससे महादेवजीको क्रोध आया और उपदेश जिन शास्त्रोमा दिया. ऐसे विरुद्ध वर्णनवाले पुराणादि ग्रंथोंको वेद बडे हैं, बडे हैं, ऐसे पुष ब्राह्मण Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy