SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१०८) . उपरके लेखसे अच्छी तरहसे सिद्ध हो गया कि ऋषि ब्राह्मणलोग अपने मुंहसे कहकर मांसका खुराक भी खाया करते थे जैसे रामचंद्रजीसे उन लोगोंने कहा, उन्होंने लक्ष्म णजीसे कहा कि मांस वगैरह भोजनकी सामग्री तैय्यार करो, उसी वख्त लक्ष्मणजी खरगोश आदि जानवरोंको मारकर ले आये, दूसरी सामग्री भी तैय्यार की, तब सीताजीने रसोई बनाई, ऋषि ब्राह्मणलोग जमदग्नि भारद्वाज आदि स्नान करके आये और उस पूर्वोक्त भोजन को जिमकर दक्षिणा लेकर चले गये. पद्मपुराण प्रथम सृष्टिखंड अध्याय १० वे के पत्र २१ वे में बयान है कि कौशिकऋषिके सात पुत्रोंने गौको मारा और श्राद्ध करके उसका मांस भक्षण किया. देखोउस विषयका उल्लेख श्लोकोंमें यूं किया है- . " तदा गत्वा विशङ्कास्ते, गुरवे च न्यवेदयन् । व्याघ्रण निहता धेनु-र्वत्सोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ ५७ ॥ एवं सा भक्षिता धेनुः, सप्तभिस्तैस्तपोधनैः। वैदिकं बलमाश्रित्य, क्रूरे कर्मणि निर्भयाः ॥ ५८ ॥" भावार्थ कि-गौका मांस खाकर शंका विहीन होकर गुरुको निवेदन करने लगे, हे गुरुदेव ! गौको व्याघ्र खा गया और यह बछडा बच गया है सो ग्रहण करो, इस तरहसे उन सातोंने वैदिक बलका आश्रय लेकर क्रूरकर्ममें निर्भय होकर 'गो' को खा लिया. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy