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________________ वराहतोको निरगा-दंगुष्ठपरिमाणकः ॥ १८ ॥" मैं जिससे पैदा हुआ हूं वो ईश मेरी मदद करो ऐसा विचार करते हुए ब्रह्माजीके नाकसे अंगुष्ट प्रमाण वराहका बच्चा निकला. तथा थोडी ही देर में वराहजी बडे हो गए और जलमें जाकर पृथ्वीको ले आए तथा हिरणाक्षका शरीर चीर डाला, उसके रुधिरकी कीचमें भरी हुई अपनी तुंडसे लीला करने लगा. ___ इस उपरके लेखसे बुद्धिमानोंकुं विचार करना चाहिये कि लोहुसे भरे हुए मुखसे क्रीडा करना, किसीको चीर डाल कर हृष्ट होना, सामान्य आदमीका काम है या परमात्माका ?. पद्मपुराण प्रथम सृष्टि खंड अध्याय ३ पत्र ७ में लिखा है कि"ब्रह्मणोऽभून्महाक्रोध-खोलोक्यदहनक्षमः। . तस्य क्रोधात्समुद्भूतं, ज्वालामालावदीपितम् ॥ १७१ ।। ब्रह्मणस्तु तदा ज्योति-स्त्रैलोक्यमखिलं दहत् । भृकुटिकुटिलात् तस्य, ललाटात् क्रोपदीपितात् ॥ १७२ ।। समुत्पन्नस्तदा रुद्रो, मध्याह्नाकसमप्रभः। अर्धनारीनरवपुः, प्रचण्डोऽतिशरीरवान् ॥ १७३ ॥ विभजात्मानमित्युक्त्वा, तं ब्रह्मान्तर्दधे ततः । तथोक्तोऽसौ द्विधा स्त्रोत्वं, पुरुषत्वं तथाकरोत् । १७४ ॥" इत्यादि वर्णन भी तद्दन युक्ति शून्य है. १ उपरके संस्कृत श्लोकोंका इतना ही संक्षिप्तार्थ है कि ब्रह्माजीके कपालसे महादेवजी आधे स्त्रीरूपमें और आधे पुरुष रूपमें पैदा हुए. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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