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________________ करके देखें तो उस राजाको कोई भी न्यायी राजा नहीं कह सकता हैं बल्के बदमास ही कहा जायगा, कारण कि सजाके सेंकडो दूसरे तरीके होने पर भी ऐसे नीच तरीकेको अखत्यार करनेवाला भला माणस है ऐसा उसके अंध खुशामदखोर अनुयायीओंके शिवाय दूसरा अकलमंद शख्स नहीं मान सकता. इस वर्णनको कितनेक लोक गोपीओंकी इंद्रियोंमें कल्पना कर उन इंद्रियों गत आवर्णको वस्त्र बनाकर उसके चोर (हरण करनेवाले ) कृष्णजीको साबित करके अपने मनमें खुश होते हैं, परंतु दूसरे मतवादिओंके तर्करूप सूर्यके तापको नहीं सहन करते हुएने इस कुकल्पनारूप गुफा बना ली है, वास्तविक सत्य इस कल्पनामें नहीं है, भागवत दशम स्कन्ध पूर्वाद्ध अध्याय ३० पत्र १२२ वा का श्लोक इसी बातको साबित करता है"बाहमसारपरिरम्भकरालकोरु-निवीस्तनालभननर्मनखाग्र पतिः । श्वेल्यावलोकहसितैजसुन्दरीणा-मुत्तम्भयन् रतिपतिरमया कार ॥ ४६॥" भावार्थ-भुजाओंका पसारना, आलिंगन करना, कर अलक, साथल नीवी-नाडुं स्तन इनका स्पर्श करना, परिहासके वचन कहना, नखोंके चिह्न, क्रीडा चितवन और हंसीओंसे व्रजसुन्दरीयोंको भगवान् काम उद्दीपन करायके रमण करने लगे ।। ४६ ॥ ___ यह श्लोक उपर लिखे हुए समाधान करनेवालोंका पूर्णतया खंडन करता है और हाथ जोडानेमें योनि तथा कुच Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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