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________________ मारवाड़ का इतिहास इसके बाद इस ( चुंगी के ) महकमे के प्रबन्ध के लिये मिस्टर एफ. टी. हयूसन बुलवाया गया । इसने इस महकमे में अनेक सुधार किए और साथ ही मापा, कानूँगोई, आदि की लागें उठा कर प्रजा के लिये भी सुविधा करदी | वि० सं० १९३९ ( ई० स० १८८२ ) में अफीम का प्रचार रोकने के लिये उस पर का महसूल ४० रुपये से बढ़ाकर ८० रुपये करदिया गया । पहले हमेशा से इधर दावानी और फौजदारी अदालतों की शिकायत थी कि जागीरदार लोग उनकी आज्ञाओं का पालन नहीं करते और उधर जागीरदारों का कहना था कि उक्त अदालतें, उनके दरजे का कुछ भी खयाल न कर, ज़रा-ज़रासी बातों के लिये उनकी तलबी या उनके गांवों की जब्ती का हुक्म निकाल देती हैं । इस पर महाराज ने, वि० सं० १९३६ की प्रथम सावन वदि १३ ( ई० स० १८८२ की १३ जुलाई) को, 'कोर्ट- सरदारान' नामक अदालत की स्थापना कर मुंशी हीरालाल को इसका सुपरिन्टेंडेंट और पौकरन, कुचामन, नींबाज, आसोप, रायपुर, खैरवा और रीयां के ठाकुरों को उसका सलाहकार नियत किया । इससे इन सरदारों की सलाह से जागीरदारों के अभियोगों पर विचार होने लगा । इसी प्रकार पहले सरदारों की जागीर के गांवों की हदबंदी न होने के कारण, हरसाल बरसात में खेती के समय, उनके आदमियों में आपस में मारपीट और झगड़े होते रहते थे। इनको बंद करने के लिये, वि० सं० १९३६ ( ई० स० १८८२) में, ' महकमा हदबस्त' क़ायम किया गया और इसका कार्य कैप्टिन डब्ल्यू लॉके, एसिस्टेंट रेज़ीडेंट, पश्चिमी - राजपूताना को सौंपा गया । इसने दौरा कर दो वर्षों में सारे झगड़ों का निर्णय कर दिया और इसी के साथ पैमाइश का काम भी जारी किया । इसी वर्ष महाराज प्रतापसिंहजी ने बरडवा नामक गाँव पर हमला कर वहां के १. वि० सं० १६४३ के सावन ( ई० स० १८८६ के अगस्त ) में इसका देहान्त होगया । इस पर इसकी यादगार कायम रखने के लिये नए बनवाए गए राजकीय अस्पताल का नाम 'ह्यूसन अस्पताल' रक्खा गया । यह शकाखाना विना किसी करने के लिये बनाया गया था। भी खोला गया था । प्रकार की फीस के सर्व साधारण की डाक्टरी तरीके से चिकित्सा मिस्टर ह्यूसन के नाम पर लड़कियों की शिक्षा के लिये एक स्कूल २. कुछ समय बाद पंडित बधावाराम इसका नायब बनाया गया । ३. राजपूताना गज़ टियर, भा० ३ ए, पृ०७४ | Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४७४ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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