SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) वि० सं० १६३० की ज्येष्ठ सुदि ६ ( ई० स० १८७३ की १ जून ) से चोरों का नियंत्रण करने के लिये रात को एक के बदले दो तोपें दागी जाने की आज्ञा हुई । इस दूसरी तोप के दगने के बाद कोई भी मनुष्य बिना रौशनी साथ में लिए बाहर नहीं निकल सकता था । महाराज के राज्य कार्य का भार सम्हालते ही देश का प्रबन्ध बहुत कुछ ठीक हो गया था । इसी से गवर्नमैन्ट की तरफ़ से नियुक्त सिरोही के पोलिटिकल सुपरिन्टैन्डैन्ट ने, वि० सं० १९३१ ( ई० स० १८७४ ) में, जालोर की तरफ़ का पुलिस का प्रबंध फिर से जोधपुर दरबार को सौंप दिया । नियुक्त किया गया । इसके बाद वि० सं० १६३० ( ई० स० १८७३ ) तक तो यह काम इसी प्रकार चलता रहा, परन्तु इस वर्ष की वैशाख वदि ५ ( ई० स० १८७३ की १७ अप्रेल ) से अपील सुनने का काम महाराजा जसवन्तसिंहजी के 'इजलास खास ' में होने लगा । अन्त में वि० सं० १६३५ के फागुन ( ई० स० १८७६ की फरवरी) में यह काम उस समय के प्रधान मंत्री महाराज प्रतापसिंहजी को सौंप दिया गया । परंतु कुछ दिन बाद उन्होंने इसके लिये ' महकमा अपील ' नाम की एक नई अदालत कायम की और महाराज भोपालसिंहजी को उसका हाकिम बनाया। इसके बाद वि० सं० १६३८ ( ई० स० १८८१ ) में यह काम कविराज मुरारिदान को सौंपा गया । वि० सं० १६३६ की फागुन सुदि ३ ( ई० स० १८८३ की ११ मार्च ) को पहले-पहल इस महकमे के लिये कानून बनाया गया । १. इनमें की पहली तोप रात के ६ बजे और दूसरी १० बजे छुटा करती थी और इसके बाद नगर के द्वार बंद हो जाते थे । २. इसी वर्ष सोभावत केसरीसिंह किलेदार बनाया गया । इसका पूर्वज कृतैसिंह अपने भाइयों के झगड़े के कारण अहमदनगर चला गया था । परंतु महाराजा तखतसिंहजी के जोधपुर आने पर उन्हीं के साथ उस ( कृतैसिंह ) का पौत्र उदैकरण जोधपुर लौट आया था । ३. यह प्रबन्ध, वि० सं० १६२८ ( ई० स० १८७१ ) में, गवर्नमेन्ट के कहने से उसे सौंपा गया था और साथ ही पोलिटिकल सुपरिन्टैन्डैन्ट की सहायता के लिये जोधपुर की तरफ का एक अफसर और कुछ सैनिक भी जालोर में रक्खे गए थे । यह प्रबन्ध जालोर और सिरोही की सरहदों के मिली होने से इधर की लुटेरी क़ौमों के उधर जाकर उपद्रव करने की प्रथा को रोकने के लिये किया गया था । वि० सं० १६३७ ( ई० स० १८७६ -८० ) में उधर की सरहद पर फिर उपद्रव उठा। इस पर महाराज ने उपद्रवियों के मुखिया रेवाड़े के ठाकुर को पकड़वा कर, वि० सं० १६३६ के भादों ( ई० स० १८८२ के सितम्बर) में फांसी दिलवा दी । ४६५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy