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________________ प्राक्-कथन । पहले मारवाड़ के इस इतिहास को एक भाग में ही प्रकाशित करने का विचार था, परन्तु बाद में अनेक उपयोगी परिशिष्टों के कारण इसकी पृष्ठ-संख्या बढ़ जाने से इसे दो भागों में विभक्त करदेना उचित समझा गया । इसी से इसके प्रथम भाग में प्रारम्भ से लेकर महाराजा भीमसिंहजी तक का और द्वितीय भाग में महाराजा मानसिंहजी से लेकर वि० सं० १९९५ ( ई० स० ११३८ ) तक का इतिहास दिया गया है । साथ ही इस द्वितीय भाग में अनेक उपयोगी परिशिष्टों और समग्र इतिहास की वर्णानुक्रमणिका का समावेश भी कर दिया गया है । इसके अलावा अनुक्रमणिका में आए हुए समान नामों में मेद प्रदर्शित करने के लिये वहीं पर उनका यथा-सम्भव संक्षिप्त परिचय भी जोड़ दिया गया है । यहां पर यह प्रकट करदेना भी आवश्यक प्रतीत होता है कि इस इतिहास की उपयोगिता के विषय में देशी और विदेशी विद्वानों ने जो सुविचार प्रकट किए हैं, उनके लिये लेखक उन सब का अत्यन्त आभारी है और इसी से उनके प्रति अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करदेना अपना कर्तव्य समझता है । ____पाठकों को यह सूचित करदेना भी अनुचित न होगा कि लेखक का लिखा राष्ट्रकूटों ( राठोड़ों) का इतिहास, जिसका अंगरेजी और हिन्दी संस्करण क्रमशः ई० स० १९३३ और १९३४ में प्रकाशित हो चुका है और जिसमें कनौज-नरेश महाराजा जयच्चन्द्र तक का इतिहाम दिया गया है, एक प्रकार से हिन्दू कालीन राष्ट्रकूटों का इतिहास है । साथ ही उसमें राष्ट्रकूटों और गाहड़वालों के वंश पर भी पूरी तौर से विचार किया गया है । ई० स० १९३८ में प्रकाशित इस मारवाड़ के इतिहास के प्रथम भाग में मुस्लिम और मरहटा-कालीन मारवाड़-नरेशों का और इसके इस द्वितीय भाग में ब्रिटिश कालीन मारवाड़-नरेशों का इतिहास प्रकाशित हुआ है । ___ इस कथन की समाप्ति के साथ ही यह निवेदन करना भी अप्रासङ्गिक न होगा कि इस इतिहास में 'स्खलनं हि मनुष्यधर्मः' इस कहावत के अनुसार रही त्रुटियों के लिये विद्वान् लोग क्षमाप्रदान की उदारता प्रदर्शित करेंगे और यदि उनकी सूचना लेखक को देने की कृपा करेंगे तो अगले संस्करण के संशोधन में उससे विशेष सहायता मिल सकेगी। आर्कियॉलॉजीकल डिपार्टमैंट - जोधपुर विश्वेश्वरनाथ रेउ आषाढ़ सुदि १४ वि० सं० १९९६. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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