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________________ महाराजा मानसिंहजी कुछ दिन बाद पोलिटिकल-एजैंट ने महाराज को लिखा कि कुचामन और भाद्राजन के सरदारों और नाथों के पास बहुत बड़ी-बड़ी जागीरें हैं । इसलिये उनमें कमी होनी चाहिए । इस पर दोनों जागीरदारों से कुछ गांव राज्य में लेलिए गए, परन्तु नाथों का प्रबन्ध न हो सका और उनका अन्याय उसी प्रकार बना रहा । यद्यपि एजेंट ने इस विषय में कईवार महाराज को लिखा, तथापि हरवार इन्होंने इधर-उधर की बातें कर टाल दिया । अन्त में जब मि० लडलो ने बहुत दबाब डाला, तब वि० सं० १८९७ के माघ (ई० स० १८४१ की जनवरी) में महाराज कर्नल सदरलैंड से मिलने अजमेर की तरफ रवाना हुए । इस पर मि० लडलो ने समझाबुझाकर इन्हें बनाड़ से वापस बुलवा लिया । वि० सं० १८१८ (ई० स० १८४१) में कर्नल सदरलैंड ने जोधपुर आकर महाराज से नाथों के प्रभाव को कम करने के लिये बहुत कुछ कहा । परन्तु इसका भी कुछ असर न हुआ । इस पर वि० सं० १८१८ के पौष (ई० स० १८४२ की जनवरी) में मि० लडलो ने नाथों की जागीरै जन्त करली । परन्तु फिर भी महाराज की आज्ञा से उनकी आमदनी गुप्तरूप से नायों के पास भेजदी जाने लगी। यह बात मि० लडलो को बहुत बुरी लगी । इसलिये उसने महाराज पर दबाव डालकर लक्ष्मीनाथ आदि को और उनसे मेल रखनेवाले जोशी प्रभुलाल, सिंघी कुशलराज, व्यास गंगाराम, भंडारी लक्ष्मीचंद, पंचोली कालूराम आदि राज्य-कर्मचारियों को जोधपुर से हटवा कर ४०-५० कोस के फासले के भिन्न-भिन्न स्थानों में भिजवा दिया। यह देख पौकरन-ठाकुर ने लक्ष्मीनाथ से मेल मिलाया और उसे लोभ देकर महाराज से प्रधानगी प्राप्त करली । इसी प्रकार नींबाज-ठाकुर शिवनाथसिंह ने आगेवा और पाटवा तथा कुंपावत करणसिंह ने कुचेरा जागीर में लिखवा लियो । यह ढंग देख मि० लडलो ने नाथों से तीन लाख रुपया सालाना लेकर राज्य में हस्ताक्षेप न करने का प्रस्ताव किया, परन्तु उन्होंने इस पर ध्यान ही नहीं दिया और वे देश में नित्य नए उपद्रव करने लगे। इससे तंग आकर, वि० सं० १९०० -- --- -- - - १. इसी वर्ष के आश्विन ( अक्टोबर ) में पोलिटिकल-एजेंट ने फलोदी जाकर जोधपुर और जयसलमेर के बीच का सरहदी झगड़ा निपटाना चाहा । यह झगड़ा बाप नामक गांव के बारे में था। परंतु इसमें सफलता नहीं हुई । २. ये गांव वि० सं० १८९७ ( ई० स. १८४० ) में देने तय हो चुके थे। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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