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________________ महाराजा मानसिंहजी महाराज के रणस्थल से लौटते ही जयपुर की सेना, सहजही मारोठ, परबतसर, सांभर, नांत्रे, डीडवाने, जैतारन, सोजत, नागोरं और मेड़ते' पर अधिकार कर, जोधपुर की तरफ़ बढ़ी | यह देख महाराज ने भी किले में युद्ध के लिये उपयोगी सामान इकट्ठा करना शुरू किया और शहर पनाह की बुर्जों पर तोपें चढ़वादीं । इसी समय जयपुर के दीवान रायचन्द ने महाराजा जगतसिंहजी को उदयपुर पहुँच कृष्ण कुँवरी से विवाह करने की सलाह दी । परन्तु सवाईसिंह ने कह सुनकर उन्हें पहले जोधपुर - विजय कर लेने के लिये उद्यत किया और स्वयं आगे बढ़, चैत्र वदि ७ (३० मार्च ) को, जोधपुर नगर को घेर लिया । इसके बाद शीघ्र ही जयपुर और बीकानेर के नरेश भी यहां आ पहुँचे और दोनों पक्षों के बीच विकट संग्राम आरम्भ होगयाँ । परंतु कुछ दिन बाद जब नगर की रक्षा करना कठिन हो गया, तब महाराज ने सिंघी जीतमल और सूरजमले को, जो किले में कैद थे, बुलवाकर दीवान बनाया । उन्हों ने किले से बाहर मा सात दिन तक तो शत्रु का सामना किया, परंतु आवें दिन वे प्रलोभन में पड़ उससे मिल गए । स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी के धाय-भाई शंभुदान ने भी क़ैद से छोड़े जाने पर धौंकलसिंह का पक्ष ग्रहण कर लिया । यह देख महाराजा मानसिंहजी ने सिंघी इन्द्रराज भंडारी गंगाराम और डेवढ़ीदार नथकरण को कैद से निकाल कर समयोचित प्रबंध करने की आज्ञा दी । इस पर वे लोग बाहर आकर पौकरन - ठाकुर सवाईसिंह से मिलें और उन्होंने उसे हर तरह से समझाने की कोशिश की । परंतु जब वह किसी तरह से न माना, तब उन्होंने प्रस्ताव किया कि यदि वह उन लोगों को और उन सरदारों ( ठाकुरों ) को जो इस समय किले में हैं विना किसी १. शत्रुओं ने नागोर पर फागुन सुदि १५ ( होली ) ( २३ मार्च) को अधिकार किया था । २. मेड़ते की शाही मसजिद में धौंकलसिंह के, वि० सं० १८६४ की सावन बदि २ मंगलवार के, दो लेख लगे हैं । इनमें का एक उर्दू में और दूसरा हिन्दी में है । ३. इस युद्ध में मारे गए कुछ वीरों की छतरियां किले के अन्दर कुछ की जयपौल के बाहर और कुछ की रानीसर तला व पर बनी हैं। ४. ये ज़ोरावरमल के पुत्र थे और इन्होंने मानसिंहजी के जालोर के किले में घिर जाने के समय से ही इनका पक्ष छोड़ महाराजा भीमसिंहजी का पक्ष ग्रहण कर लिया था । ५. यह मुलाकात जोधपुर शहर से बाहर 'कागा' नामक स्थान पर हुई थी । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४०६ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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