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________________ राव अमरसिंहजी राव अमरसिंहजी के दो पुत्र थे । रायसिंह और ईश्वरीसिंह । कर्नल टॉड ने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि "आगरे के किले के जिस द्वार से घुसकर अमरसिंह के योद्धाओं ने अपने स्वामी का बदला लेने में प्राण दिए थे, वह 'बुखारा दरवाजा' उसी दिन से बन्द कर दिया गया था ।" इस घटना के कुछ मास बाद बादशाह ने स्वर्गवासी राव अमरसिंहजी के पुत्र रायसिंह को एक हजारी जात और सात सौ सवारों का मनसब दिया । इसके बाद रायसिंह शाही दरबार में बराबर तरक्की करता रहा, और वि० सं० १७१५ ( ई० स० १६५१ ) में जब औरंगजेब ने खजवा के निकट शुजा को हराकर भगा दिया, तब कुछ समय बाद उसने महाराजा जसवन्तसिंहजी से बदला लेने के लिये इसी रायसिंह को चार-हजारी जात, चार हजार सवारों का मनसब, राजा का ख़िताब और जोधपुर का राज्य लिख दिया था । परन्तु महाराजा जसवन्तसिंहजी के प्रभाव के आगे यह कार्य पूर्ण न हो सका । वि० सं० १७३३ में रायसिंह की मृत्यु हो गई । इसलिये बादशाह औरंगजेब ने इसके पुत्र इन्द्रसिह को अपना मनसबदार बना लिया। इसके बाद, वि० सं० १. इसका जन्म वि. सं. १६६० की आश्विन सुदि १० को हुआ था। २. इसका जन्म वि० सं० १६४८ की द्वितीय ज्येष्ठ वदि १३ को हुआ था। ३. उसके बाद यह दरवाजा पहले-पहल, वि० सं० १८६६ (ई. स. १८०६) में, कैप्टिन स्टील द्वारा खोला गया था। वहीं पर फुट नोट में कर्नल टॉड ने लिखा है कि स्वयं कैटिन स्टील ने उनसे कहा था कि, जिस समय उक्त द्वार फिर से खोला जाने लगा, उस समय वहाँ के निवासियों ने उस से कहा कि यह द्वार जब से बन्द किया गया है, तभी से इसमें एक बड़ा अजगर निवास करता है । इसलिये सम्भव है कि इसके खोलने से खोलने वाले पर कुछ संकट आ पड़े। इसके बाद वास्तव में जब दरवाजे के खोलने का कार्य समाप्ति पर प्राया, तब उसमें से एक भयंकर अजगर निकल कर कैटिन स्टील के पैरों की तरफ मपटा । परन्तु भाग्यवश वह भागकर मृत्यु-मुख से बच गया। ( टॉड्स ऐलानाल्स ऐण्ड ऐण्टिक्विटीज़-ऑफ राजस्थान ( क्रुक संपादित ), भा॰ २, पृ. ६७८-६७६ ) आगरे के किले का यही दक्खनी द्वार आजकल अमरसिंह के दरवाजे के नाम से प्रसिद्ध है। ४. बादशाहनामा, भाग २, पृ. ४.३ । वि. सं. १७०५ (६) के रायसिंहजी के ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि इन्होंने और इनके भाई ईश्वरीसिंह ने ईदोखली नामक ( रूण परगने का ) एक गांव चारण को दान दिया था। ५. मालमगीरनामा. पृ. २८८ । ६. इसका जन्म वि. सं. १७०७ की ज्येष्ठ सुदि १२ को हुआ था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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