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________________ मारवाड़ के सिके समय (वि० सं० १९१८ ई० स० १८६२ ) से हरसाल सावन में सोने और चांदी के सिक्कों के लिये नए ठप्पे बनाने का रिवाज चल गया। इससे उन पर के संवत् भी बदल दिए जाने लगे। फिर भी तांबे के सिक्कों का ठप्पा तो आवश्यकता पड़ने पर ही बदला जाता था। परन्तु आजकल फिर वही आवश्यकता होने पर नया सिक्का बनाने का पुराना तरीका चल पड़ा है । अपने समय में बने सिक्कों की पहचान के लिये राज्य की प्रत्येक टकसाल का दारोगा ठप्पे में अपना खास चिह्न या अक्षर जोड़ दिया करता था। इससे किसी सिक्के के तोल में या उसकी धातु की शुद्धता में गड़बड़ मिलने पर, बिना किसी झंझट के, वह उसका जिम्मेवार समझ लिया जाता था। यहां के सिक्कों पर का झाड़ और तलवार का निशान राज्य-चिह्न की तौर पर बनाया गया था। इस झाड़ में या ७ शाखाएं मिलती हैं । परन्तु १ शाखाओंवाला झाड़ असली बिजैशाही या 'लुलूलिया' रुपयों पर ही मिलता है । महाराजा तखतसिंहजी ने इस झाड़ को तुर्रे ( मस्तक पर बांधे जानेवाले आभूषण ) का रूप दिलवाया था। इसी से मारवाड़ के लोग इन चिह्नों को खाँडा (एक प्रकार की तलवार ) और तुर्रा कहते हैं। यहां के किसी-किसी सिक्के पर पाँच पत्ती के फूल, स्वस्तिक, त्रिशूल और तीर के चिह्न मी बने मिलते हैं । ये ठप्पे में की खाली जगह को भरने के लिये बना दिए जाते थे। मारवाड़ में पहले ये सोने, चांदी और तांबे के सिक्के व्यापारी लोग ही बनवाया करते थे । टकसाल का दारोगा उनके लार हुए सोने और चांदी की जाँच कर सिक्के बनवा देता था। इसके लिये व्यापारियों को मजदूरी के अलावा नियत राज्य-कर (Royalty) भी देना होता था। यह राज्य-कर राज्य की भिन्न-भिन्न टकसालों में मिन्न-भिन्न था। जोधपुर में प्रत्येक मोहर (अशर्फी) पर पौने दो आने, प्रति १०० रुपयों पर छै आने और मन भर तांबे ( या १४,००० पैसों) पर तीन रुपये थे। सोजत में १०० रुपयों पर ग्यारह आने और मेड़ता में १०० रुपयों पर तेरह आने लगते थे । वि० सं० १९५६ (ई० स० १८६९-१९००) के भीषण दुर्भिक्ष के कारण मारवाड़ में लाखों रुपयों का नाज और घास बाहर से मँगवाना पड़ा । इसी से यहां के १. इस समय प्रति १०० अशी पर ६ पाने राज्य लेता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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