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________________ मारवाड़ के सिक पहली किस्म के चांदी के सिक्के आकार में ब्रिटिश-भारत की अंगरेजी अठन्नी के बराबर होनेपर भी मुटाई में उससे बहुत पतले होते हैं । इनकी एक तरफ़ राजा का छाती तक का चित्र और दूसरी तरफ अग्निकुण्ड बना होता है। ये सिक्के ईरानी सिक्कों की नकलपर बनाए गए थे। परन्तु कारीगरी में उनसे भद्दे होते हैं। दूसरी किस्म के सिक्के पहले प्रकार के सिक्कों से आकार में कुछ छोटे, परन्तु मुटाई में कुछ अधिक होते हैं और इनपर के चित्र आदि और भी भद्दे और अस्पष्ट मिलते हैं। तीसरी किस्म के सिक्कों का आकार ब्रिटिश-भारत की चांदी की दुअन्नी का-सा होता है । परन्तु इनकी मुटाई अधिक होती है। साथ ही इनपर का राजा का चित्र गधे के खुर का-सा दिखाई देता है। इसी से इनका नाम 'गघिया' या 'गधैया' हो गया है । इनपर का दूसरी तरफ का अग्निकुण्ड भी आड़ी-तिरछी लकीरों और बिन्दुओं का समुदाय-सा ही प्रतीत होता है। इन सिक्कों में यह परिवर्तन सम्भवतः विक्रम की दशवीं शताब्दी के करीब हुआ होगा। इस प्रकार के सिक्के ग्यारहवीं शताब्दी तक गुजरात, राजपूताना और मालवा में प्रचलित थे। इसी बीच यहां पर कुछ समय के लिये प्रतिहार-नरेश भोजदेवे की मुद्राओं का भी प्रचार रहा था। इनपर एक तरफ़ नर-वराह की मूर्ति बनी होती है और दूसरी तरफ़ 'श्रीमदादिवराहः' लिखा रहता है । ऐसी कुछ मुद्राएं र वर्ष पूर्व सांभर-प्रान्त से मिली थीं। १. वि० सं० ५.१ (ई. स. ४८४) के करीब जब हूणों ने ईरान (पर्शिया ) पर प्राक्रमण किया. तब वे वहां का खजाना लूटकर वहां के ससेनियन शैली के सिक्के भारत में ले पाए । ये सिक्के आकार में ब्रिटिश-भारत के रुपये के बराबर होने पर भी मुटाई में उससे कम होते हैं । इनकी एक तरफ राजा का चेहरा और पहलवी अक्षरों में लेख, तथा दूसरी तरफ अमि-कुण्ड और उसके दोनों तरफ दो खड़े पुरुष बने होते हैं । २. इस भोजदेव की वि० सं० ६०० से ६३८ (ई० स० ८४३ से ८८१) तक की प्रशस्तियां मिली हैं। ६३५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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