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________________ महाराजा उम्मेदसिंहजी और महाराज अजितसिहजी को दूसरी दिशा में जाना पड़ा। महाराजा साहब अपनी छोटी सी टोली के साथ सावो (Isavo) नदी के उस प्रदेश में, जिसका पूरा-पूरा वर्णन पैटर्सन की 'सावो के मनुष्य भक्षक' (Alan eaters of the T savo) नामक पुस्तक में दिया गया है, पहुँचे और महाराज अजितसिहजी आपकी अपेक्षा माउंगू से कुछ पास रहकर शिकार की खोज करने लगे। अन्त में कुछ दिनों के, प्रातःकाल से पूर्व निकल कर अंधेरा होने तक सघन झाड़ियों में घूमते रहने के, कठिन परिश्रम के बाद महाराजा साहब ने एक एफ़िकन हाथी का शिकार किया। इसका प्रत्येक दांत तोल में ५७ पाउंड था । यद्यपि यह भार अपेक्षा-कृत हलका था, तथापि ये दांत, खास तौर पर लम्बे और सुन्दर बनावट के थे। शिकार कर लेने के बाद, हाथी के दांत निकालने और पैर, कॉन व पूँछ काटने का चातुर्य-पूर्ण और श्रन-साध्य कार्य किया गया। हाथी की पूँछ पर के बालों से उसकी आयु का पता चलता है, इसी से यह भाग विशेष महत्त्व रखता है। इसके अलावा हाथी के मरकर एक पार्श्व पर गिर जाने के कारण बहुधा उसके दोनों कान शिकारी के हाथ नहीं आते, क्योंकि उस अवस्था में उसका उठाना असम्भव हो जाता है । वहां से लौटकर महाराजा साहब ने कुछ दिन माउंगू में विश्राम किया और फिर दो दिन इधर-उधर शिकार कर लेने के बाद आपने दूसरा बड़ा हाथी मारा । इसके दांतों का तोल ११७ और ११४ पाउंड था और उनकी लम्बाई ७ फुट ९ इंच और ७ फुट ३ इंच थी। इसके बाद शीघ्र ही महाराज अजितसिह जी ने भी दो सुन्दर हाथियों का शिकार किया । उनका प्रत्येक दांत औसतन १० पाउंड था। यद्यपि महाराजा साहब ने शिकार के लिये लगाए एक सप्ताह के चक्कर में ही दो हाथी मारलिए, तथापि महाराज अजितसिह जी को दो सप्ताहों तक बिना एक भी गोली चलाए निष्फल चक्कर काटने पड़े। परन्तु अन्त में चार दिनों में ही दो हाथी उनके हाथ लग गए । इसी से कहा जाता है कि हाथी के शिकार में भाग्य, धैर्य और चातुर्य की आवश्यकता होती है । ५७६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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