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________________ महाराजा सुमेरसिंहजी पहुंचे। उस समय वहां के मारवाड़ी-समाज ने आपके स्वागत में उत्सव करने की अनुमति मांगी । परन्तु आपने, दिखावा पसन्द न होने के कारण, यह बात अस्वीकार करदी । इसके बाद तीसरे दिन आप बम्बई से खाना होकर आबू आएं और वहां से शिमले होकर दुबारा आबू होते हुए, श्रावण बदि ३ (२९ जुलाई) को, जोधपुर पहुंचे। इसके बाद भादों सुदि ८ (१६ सितम्बर ) को आप हवा बदलने के लिये मसूरी गए और कार ( आश्विन ) सुदि ६ ( १४ अक्टोबर) को लौट कर जोधपुर आ गए। वि० सं० १९७२ की आश्विन वदि (ई० स० १९१५ की १ अक्टोबर) को जोधपुर में अजायबघर के साथ ही एक सार्वजनिक पुस्तकालय ( लाइब्रेरी)की स्थापना की गई। १. ज्येष्ठ सुदि १४ (२६ जून ) कोकर्नल सी. जे. विंढम सी. आइ. ई. बनाया गया । भादों वदि ३ (२७ अगस्त) को राज्य की तरफ से पौकरन-कँवर चैनसिंह को, मारवाड़ के सरदारों में पहला एम. ए., एल एल. बी. होने के कारण, सुवर्ण का पदक दिया गया । २. इस युद्ध में टर्की ने जर्मनी का साथ दिया था। इसलिये युद्ध में पकड़े गए कुछ तुर्क कैदी जोधपुर भेज दिए गए। यहां पर वे कुछ दिनों तक तो सेंट्रल-जेल में ही रखे गए, परंतु बाद में उनके लिये मारवाड़-राज्य के सुमेरपुर नामक गांव में स्थान तैयार किया गया और वहां के निवासियों को १,५७,०७६ रुपयों का हरजाना देकर पास ही के ऊंदरी गांव में बसाया गया। यह सुमेरपुर वि० सं० १९६८ की चैत्र वदि १२ (ई. स. १६१२ की १५ मार्च ) को, मारवाड़ और सिरोही राज्यों की सीमा पर के अंदरी गांव के निकट, बसाया गया था। उस समय सिरोही-राज्य के कुछ प्रजाजन वहां के नरेश से नाराज़ होकर मारवाड़ में बसने की आज्ञा चाहते थे । यद्यपि अन्त में सिरोही के महाराव ने उनमें से अधिकांश को समझा-बुझाकर अपने राज्य में ही रख लिया, तथापि कुछ मुखिया लोग और बहुत से कृषक आदि आकर सुमेरपुर में बस गए । परंतु कुछ दिन बाद तुर्क कैदियों के वहां पर रक्खे जाने से उन लोगों को भी वह स्थान खाली कर लौट जाना पड़ा । यद्यपि इससे राज्य की बड़ी हानि हुई, तथापि सम्राट् की सहायता का विचार कर महाराजा ने इसकी कुछ भी परवाह न की। ३. भादों सुदि ३ ( १२ सितम्बर) को दरबार की तरफ से 'सुमेर-पुष्टिकर-स्कूल' की सहा यता के लिये सात हज़ार रुपये दिए गए। ४. अगले वर्ष इसका नाम बदला जाकर महाराजा सुमेरसिंहजी के नाम पर 'सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी' कर दिया गया। पहले जोधपुर का अजायबघर 'इंडस्ट्रियल म्यूज़ियम' कहाता या । ई० स० १६१६ में भारत-गवर्नमेंट ने इसे स्वीकृत अजायबघरों की सूची में सम्मिलित करलिया। इसके बाद अगले वर्ष इसका नाम बदला जाकर स्वर्गवासी महाराजा सरदारसिंहजी के नाम पर 'सरदार म्यूज़ियम' रक्खा गया । ५२५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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