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________________ मारवाड़ का इतिहास ( ११ अक्टोबर ) को महाराजा साहब का स्वर्गवास होगया । 1 महाराजा जसवन्तसिंहजी (द्वितीय) बड़े गुणी, दानी, शान्त, सरल और प्रजाप्रिय नरेश थे । आपही के समय मारवाड़ का शासन - कार्य पहले-पहल आधुनिक नवीन शैली पर परिवर्तित किया गया था । इस कार्य में महाराजा के छोटे भ्राता महाराज प्रतापसिंहजी ने भी, जो राज्य के मुसाहिब आला ( प्रधान मंत्री ) थे, बड़ा परिश्रम किया था, और उस समय के गवर्नमैन्ट की तरफ़ के रैजीडैंट कर्नल पाउलेट का भी इसमें पूरा सहयोग प्राप्त हुआ था। इस प्रकार योग्य- नरेश, कार्यकुशल-मंत्री, और प्रवीणसलाहकार के संयोग से मारवाड़ राज्य का प्रबन्ध उन्नत अवस्था को पहुँच गया । । देश में ३६४ मील रेल्वे लाइन के खुल जाने, तथा तार, डाक, सड़क और सायर ( चुंगी ) का प्रबन्ध ठीक हो जाने से आवागमन में सुविधा और व्यापार में उन्नति होने लगी । उस समय तक मारवाड़ में करीब १५ ( अंगरेज़ी ढंग के ) शफ़ाख़ानों के खुल जाने से लोगों की चिकित्सा का बहुत कुछ प्रबन्ध हो गया । इसी प्रकार चेचक के टीके और म्यूनिसिपैलिटि ( सफ़ाई ) के महकमे का प्रबन्ध हो जाने से बालकों की मृत्यु-संख्या में कमी और जनता के स्वास्थ्य में वृद्धि होने लगी | मारवाड़ की नाप (सर्वे), गांवों की हदबंदी और सरहदों का निर्णय हो जाने, तथा जुरायम- पेशा क़ौमों के खेती के कार्य में लग जाने से चोरी, डकैती और मारकाट भी कम हो गई । साथ ही पुलिस और फ़ौज के प्रबन्ध ने निरंकुश - बागियों और लुटेरों के दिल में राज्य का भय उत्पन्न कर दिया । उस समय सरकारी फौज में ४,६६० और जागीरदारों की जमीअत में २,२४६ जवान थे । देशवासियों की शिक्षा के लिये १ कॉलेज ( जिसमें 'इंटर मीजियेट' तक की पढ़ाई होती थी ) १ हाई स्कूल, १ संस्कृत स्कूल, १ हिन्दी स्कूल, १ गर्ल्स स्कूल, ६ परगनों के एंग्लो-वर्नाक्यूलर स्कूल, १५ परगनों के वर्नाक्यू १. अब तक मारवाड़ - नरेशों का दाह संस्कार जोधपुर से ६ मील पर स्थित मंडोर नामक स्थान पर होता था । परन्तु रत्थी के साथ जाने में होने वाले प्रजा के कष्ट को दूर करने के लिये आप (महाराजा जसवन्तसिंहजी ) की इच्छानुसार आपका अन्तिम संस्कार देवकुण्ड पर किया गया । प्रजाप्रिय महाराज के स्वर्गवास से प्रजा को बड़ा दुःख हुआ और १२ दिनों तक बाज़ार बंद रक्खे गए। इस घटना के कारण बूंदी, किशनगढ़, खेतड़ी, सीकर, कोटा, बीकानेर, उदयपुर, जयपुर और धौलपुर के महाराजाओं और बड़ोदा-नरेश के चचा ने जोधपुर आकर अपना शोक प्रकाशित किया । साथ ही बंबई आदि में रहने वाले मारवाड़ियों ने भी शोक सभाएं कर अपने सर्व प्रिय महाराज के स्वर्गवास पर हार्दिक दुःख प्रकट किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ४६० www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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