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________________ राव सलखाजी ६. राव सलखाजी यह राव तीडाजी के छोटे पुत्र थे । जिस समय इनके बड़े भाई कान्हड़देवजी गद्दी पर बैठे उस समय उन्होंने इन्हें एक गांव जागीर में दिया था । यह गांव सलखाजी की जागीर में रहने के कारण 'सलखा-वासनी' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके बाद जब कान्हड़देवजी के समय महेवे पर मुसलमानों का अधिकार हो गया, तब मौका पाकर इन्होंने महेवे का कुछ भाग उन ( मुसलमानों) से छीन लिया और भिरड़कोट में रहकर अपने अधीनस्थ प्रदेश का शासन करने लगे। इन्होंने चौहानों को परास्त कर भीनमाल को भी लूटा था । इनके इस प्रकार बढ़ते हुए प्रताप को देखकर मुसलमानों ने इन पर अचानक चढ़ाई कर दी । इसी में राव सलखाजी मारे गएं। इनके ४ पुत्र थे । १ मल्लिनाथजी, २ जैतमालजी, ३ वीरमजी और ४ शोभितजी । (१०) राव त्रिभुवनसीजी-यह राव कान्हड़देवजी के छोटे भाई थे और उनकी मृत्यु के बाद खेड़ की गद्दी पर बैठे । परन्तु शीघ्र ही इनके छोटे भ्राता सलखाजी के पुत्र मल्लिनाथजी ने, मुसलमानों की सहायता प्राप्त कर, इन पर चढ़ाई कर दी । युद्ध में घायल हो जाने के कारण त्रिभुवनसीजी हार गए और कुछ ही दिन बाद इनकी मृत्यु हो गई। ख्यातों में लिखा है कि मल्लिनाथजी ने अपने बन्धु पद्मसी को प्राधे राज्य का प्रलोभन देकर उसके द्वारा त्रिभुवनसी के घावों में नीम के पत्तों के साथ विष का प्रयोग करवा दिया था। इससे शीघ्र ही इनकी मृत्यु हो गई । परन्तु कार्य हो जाने पर मल्लिनाथजी ने अपनी प्रतिज्ञा तोड़ दी और उसे केवल दो गाँव देकर ही टाल दिया । त्रिभुवनसीजी के तीन पुत्र थे। किसी किसी ख्यात में यह भी लिखा है कि राव तीडाजी के बाद पहले त्रिभुवनसीजी और उनके बाद कान्हड़देवजी गद्दी पर बैठे थे, तथा मल्लिनाथजी ने, जालोर के मुसलमान शासकों की सहायता से, इन्हीं कान्हड़देवजी को राज्यच्युत किया था । परन्तु यह क्रम ठीक प्रतीत नहीं होता। १. कुछ ख्यातों में इनका वि० सं० १४२२ (ई० स० १३६५) में, मंडोर के पड़िहारों की सहायता से, मुसलमानों को हरा कर महेवे पर अधिकार करना लिखा है । २. किसी किसी ख्यात में इस घटना का समय वि० सं० १४३१ (ई० स० १३७४) दिया है। ३. (११) रावल मल्लिनाथजी-यह सलखाजी के ज्येष्ठ पुत्र थे और पिता की मृत्यु के बाद अपने तीनों छोटे भाइयों को साथ लेकर अपने चचा राव कान्हड़देवजी के पास जा रहे । थोड़े ही दिनों में इनकी कार्य कुशलता से प्रसन्न होकर उन्होंने राज्य का सारा प्रबन्ध इन्हें सौंप दिया । परन्तु कुछ दिन बाद इन्होंने महेवे पर अधिकार कर लेने का विचार किया और इसके लिये मुसलमानों की सहायता प्राम करता आवश्यक समझ, यह उसकी तलाश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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