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________________ मारवाड़ का इतिहास ३. राव धूहड़जी यह राव आसथानजी के बड़े पुत्र थे, और उनके युद्ध में मारे जाने पर उनके उत्तराधिकारी हुए । इन्होंने अपनी वीरता से अपने पैतृक राज्य की और भी वृद्धि की, और आस-पास के १४० गांवों पर विजय प्राप्त कर उन्हें अपने राज्य में मिला लिया I १. इनका राज्याभिषेक वि० सं० १३४८ या १३४६ ( ई० सन् १२६१ या १२६२ ) ज्येष्ठ में हुआ होगा । २. पहले लिखा जा चुका है कि ख्यातों के अनुसार सीहाजी की मृत्यु के समय उनके गढ़ गोयंदाने (कुन्नौज के पास ) के राज्य पर उनकी बड़ी रानी के पुत्रों ने अधिकार कर लिया था; इससे आसथानजी को पाली ( मारवाड़ ) की तरफ लौट आना पड़ा। इसी का बदला लेने के लिये राव धूहड़जी ने गढ़ गोयंदाने पर चढ़ाई की । यद्यपि वहांवालों को मुसलमानों की मदद मिल जाने से धूहड़जी सफल न हो सके, तथापि लौटते समय यह कर्नाट से अपनी कुलदेवी चक्रेश्वरी की मूर्ति ले आए, और उसे नागाना- नामक गांव में एक नीम के वृक्ष के नीचे स्थापित कर दिया । इसी से इनके वंशज ( राठोड़) नीम को पवित्र मानने लगे । यह भी प्रसिद्ध है कि नागाना गांव के संबंध के कारण ही उस देवी का नाम नागनेची हुआ। कर्नल टॉड ने भी धूहड़जी की कन्नौज पर की इस चढ़ाई का उल्लेख किया है ( ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० २, पृ० ६४३ ) । परंतु यह कथा कल्पित ही प्रतीत होती है । किसी-किसी ख्यात में इस मूर्ति का कल्याणी ( कोंकन - दक्षिण में) से लाया जाना भी लिखा है । साथ ही उक्त देवी ( नागनेची ) के नाम के पीछे दक्षिण में प्रयुक्त होनेवाला 'ची' प्रत्यय लगा होने से भी इस मत की पुष्टि होती है । परंतु ऐतिहासिक इस कल्याणी से कन्नौज के कल्याण कटक ( बांबे गज़ेटियर भा० १, खंड १, पृ० १५० ) का तात्पर्य ही लेते हैं; क्योंकि पष्ठी विभक्ति का बोधक यह 'ची' या 'चा' प्रत्यय राजस्थानी भाषा में भी प्रयुक्त होता आया है, जैसे: (१) खेड़ के संबंध से राव आसथानजी के वंशजों ( राठोड़ों ) का खेड़ेचा के नाम से प्रसिद्ध होना । (२) " हे जगत जननी, पुत्र तुमचो, मेरु मज्जन वर करी; उच्छंग तुमचे वलिय थापिस, प्रातमा पुण्ये भरी ।” ( जिन-पूजा-पद्धति ) इस देवी के पुजारी भी राठोड़ ही हैं, जो नागनेचिया राठोड़ कहाते हैं । किसी-किसी ख्यात में लिखा मिलता है कि जयचंदजी ने जब चित्तौड़ विजय किया था, तब वहाँ पर भी अपनी कुलदेवी ( नागनेची ) का मंदिर बनवाया था । ४६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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