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________________ राव आसथानजी इनके इसी खेड़ नगर में पहले पहल यथानियम अपनी राजधानी स्थापित करने के कारण इनके वंशज 'खेड़ेचा' कहाने लगे। कुछ काल बाद राव आसथानजी ने ईडर (गुजरात) के (कोली-जाति के) राजा सामलिया सोड के मंत्री से मिलकर उक्त नरेश को मार डाला, और वहाँ का राज्य अपने छोटे भाई सोनग को दे दिया । ईडर के राजा होने के कारण ही सोनग के वंशज ईडरिया राठोड़े कहाए । ख्यातों से ज्ञात होता है कि उस समय खेड़-राज्य में ३४० गाँव थे । १. यद्यपि कर्नल टॉड ने उस समय ईडर पर डाभियों का राज्य होना लिखा है (ऐनाल्स ऐड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, क्रुक-संपादित, भा॰ २, पृ० ६४३), तथापि मिस्टर फॉर्स ने वहाँ के, उस समय के, राजा का परिचय सामलिया सोड लिखकर दिया है (रासमाला, भा० १, पृ० २६४) । उसी में यह भी लिखा है कि यह (कोली-जाति का नरेश) अपने मंत्री (जो जाति का नागर ब्राह्मण था) की रूपवती कन्या पर आसक्त हो गया, और उसका विवाह अपने साथ कर देने का आग्रह करने लगा । इस पर मंत्री ने सोचा कि यदि मैं इस समय इनकार कर दूंगा, तो यह कन्या को ज़बरदस्ती पकड़कर ले जायगा । इस वास्ते कुछ समय के लिये इसको टाल देना ही उचित है । इसी के अनुसार उसने विवाह का प्रबंध करने के लिये ६ मास की मियाद माँग ली । इसके बाद वह सामेतरा में जाकर सोनगजी से मिला, और ईडर का राज्य दिलवाने का वादा कर उन्हें अपनी सहायता के लिये तैयार कर लिया । इस प्रकार सब प्रबंध कर लेने पर उसने सामलिया को विवाह के लिये आने का निमंत्रण भेजा । परंतु जिस समय विवाह में इकट्ठे हुए कोली लोग शराब पीकर मस्त हो गए, उस समय सोनगजी के साथवालों ने अपनी छिपने की जगह से निकल उन पर हमला कर दिया । यद्यपि सामलिया स्वयं इनके पंजे से निकल भागा, तथापि किले के द्वार के पास पहुँचते-पहुँचते वह भी आहत होकर गिर पड़ा । इसके बाद उसने अपने बचने की आशा न देख स्वयं अपने हाथ से ही सोनगजी के ललाट पर ईडर का राज-तिलक लगा दिया, और इनसे प्रार्थना की कि मेरी यादगार बनाए रखने को जब-जब आपके वंश के नरेश पहली बार गद्दी पर बैठे, तब-तब मेरी जातिवाले को ही राजतिलक करने का अधिकार रह । सोनगजी ने उसकी यह प्रार्थना स्वीकार करली (रासमाला, भा० १, पृ० २६३-२६४) । यह घटना वि० सं० १३३१ (ई. सन् १२७४) के करीब या इससे कुछ समय बाद हुई होगी । वहाँ पर इनके वंशजों का राज्य वि० सं० १७७५ (ई. सन् १७१८) के कुछ काल बाद तक रहा था। २. कर्नल टॉड ने सोनग के वंशजों का हyडिया राठोड़ के नाम से प्रसिद्ध होना लिखा है (ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भा॰ २, पृ० ६४३)। परंतु यह ठीक नहीं है; क्योंकि बीजापुर (गोडवाड़-मारवाड़) से मिल वि० सं० १०५३ के लेख Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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