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________________ मास्वाद का इतिहास में मूलराज ने इन्हें अपनी कन्या व्याह दी थी । परन्तु यह ठीक प्रतीत नहीं होता, क्योंकि जैनाचार्य हेमचन्द्र रचित 'याश्रय काव्य के पाँचवें सर्ग में लिखा है: तौ गूर्जरत्राकच्छस्य द्वारका कुण्डनस्य नु नाथौ शरोमिमालामिर्गङ्गाशोणं प्रचक्रतुः ॥ १२१ ॥ कुन्तेन सर्वसारेणावधील्लदं चुलुक्यराट् ॥ १२७ ।। अर्थात् —गुजरात के सोलंकी राजा मूलराज और कच्छ के राजा लाग्वा के बीच भीषण युद्ध हुआ । अन्त में सोलंकी मूलराज प्रथम ने लाखा को मार डाला । साँभर ( मारवाड़ ) से मिले सोलंकियों के एक शिलालेख में लिखा है: वसुनन्दनिधौ वर्षे व्यतीते विक्रमार्कतः । मूलदेवनरेशस्तु चूडामणिरभूद्भुवि ॥ ६ ॥ अर्थात्-वि० सं० १६८ के बीत जाने पर मूलदेव राजा हुआ । इससे ज्ञात होता है कि मूलराज प्रथम ने वि० सं० ११८ (ई० स० १४१) के बादही गुजरात विजय कर वहाँ पर अपना राज्य स्थापित किया था । इसकी प्रशस्तियों से प्रकट होता है कि यह वि० सं० १०५१ १. यह काव्य वि० सं० १२१७ (ई० सन् १९६०) के करीब बनाया गया था। इसमें लिखा है कि जिस समय सौराष्ट्र देश के राजा ग्रहरिपु ने पाटण पर चढ़ाई की, उस समय कच्छ देश का राजा लाखा भी उसके साथ था। इसी युद्ध में गुजरात के राजा मूलराज ने नेजे (कुन्त) का प्रहार कर लाखा को मारा था । वि० सं० १२८२ (ई० स० १२२५) के करीब की बनी सोमदेव की 'कीर्ति-कौमुदी' में भी लाखा का मूलराज प्रथम के हाथ से मारा जाना लिखा है: महेच्छकच्छभूपालं लक्षं लक्षीचकार यः । वि० सं० १३६२ (ई. स. १३०५) की बनी मेरुतुङ्ग की 'प्रबन्धचिन्तामणि' से भी इसकी पुष्टि होती है । उसमें लिखा है: कच्छपलक्षं हत्वा सहसाधिकलम्बजालमायातम् । सारसागरमध्ये धीरवता दर्शिता येन ॥ डफ की 'क्रॉनॉलॉजी ऑफ इण्डिया' में ग्रहरिपु का समय ई० स.० ६१६ और ६५६ (वि० सं० ६७३ और १०१६) के बीच लिखा है। २. सरदार म्यूज़ियम और सुमेर पब्लिक लाइब्रेरी, जोधपुर की ई० स० १६२५.२६ की रिपोर्ट, पृ० २; और इण्डियन ऐपिष्टकैरी, भाग ५८, पृ० २३४-२३६ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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