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________________ महाराजा विजयसिंहजी लाने को चले । जिस समय सरदारों का पड़ाव बीसलपुर में था, उस समय महाराज भी वहां जा पहुँचे । यह देख सारे सरदार सामने आकर महाराज से मिले और इनके साथ लौटकर जोधपुर की तरफ़ चले । परन्तु इनके जोधपुर पहुँचने के पूर्व ही, वि० सं० १८४६ की वैशाख वदि ७ (ई० स० १७९२ की १३ अप्रेल ) को, महाराज के पौत्र भीमसिंहजी ने जोधपुर के किले और नगर पर अधिकार कर लिया। वि० सं० १८४९ की वैशाख बदि १० (ई० स० १७९२ की १६ अप्रेल ) को पौकरन-ठाकुर और रास-ठाकुर के आदमी गुलाबराय को, किले पर पहुँचा देने के बहाने से, पीनस में बिठाकर ले गए और मार्ग में उन्होंने उसे मारंडाला । परन्तु महाराज को इसकी खबर न होने दी । वि० सं० १८४९ की वैशाख सुदि ६ (ई० स० १७९२ की २७ अप्रेल) को जब महाराज जोधपुर के निकट पहुंचे, तब नगर और किले पर भीमसिंहजी का अधिकार देख बालसमंद के बगीचे में ठहर गए । अन्त में दस महीने बाद रीयां, कुचामन, मीठड़ी, बलूदा और चंडावल के ठाकुरों ने पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह को समझाया कि महाराज की उपस्थिति में उनके पौत्र भीमसिंहजी का जबरदस्ती राज्याधिकारी बन बैठना शोभा नहीं देता। इस पर उसने महाराज से भीमसिंहजी को खर्च के लिये सिवाना जागीर में देने और महाराज के बाद जोधपुर की गद्दी पर उनका अधिकार कायम रखने का वादा करवा कर उन (भीमसिंहजी) को सिवाने मिजवा देने का प्रबन्ध किया । यद्यपि भीमसिंहजी ने ये बातें स्वीकार करली, तथापि किला छोड़ने के पूर्व उन्होंने सरदारों से यह प्रतिज्ञा करवाली कि सिवाने की तरफ़ जाते समय मार्ग में उनसे किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की जाय । इस प्रकार पूरा प्रबन्ध होजाने पर वह किले से बाहर चले आए और महाराज से क्षमा मांग १. भीमसिंहजी महाराजा विजयसिंहजी के द्वितीय पुत्र भोमसिंहजी के लड़के थे और महाराज के स्वर्गवासी ज्येष्ठ-पुत्र फतैसिंहजी की गोद बिठाए गए थे। किसी किसी ख्यात में यह भी लिखा है कि जिस समय सरदार जोधपुर छोड़कर बीसलपुर या मालकोसनी की तरफ रवाना हुए थे, उस समय उन्होंने भीमसिंहजी को समझा दिया था कि महाराज के हमारे पीछे आने पर आप जोधपुर के किले और नगर पर अधिकार कर लेना। २. यह पली के रूपावत सरदारसिंह के हाथ से मारी गई थी। और उसके पास जो धन था वह पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह और रास-ठाकुर जवानसिंह ने आपस में बांट लिया था। ३. इस कार्य में मुख्य भाग कुचामन ठाकुर ने लिया था। ३६१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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