SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 496
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराजा विजयसिंहजी महाराजा विजयसिंहजी ने बीकानेर और किशनगढ़ के नरेशों को सहायता के लिये बुलवा लिया। इधर मेड़ते में जोधपुर, बीकानेर और किशनगढ़-नरेशों की सेनाएं युद्ध के लिये तैयार हो रही थीं और उधर महाराष्ट्र-वीर, सांभर, नांवा और परबतसर पर अधिकार करने के बाद, अजमेर को घेर कर, मेड़ते की तरफ बढ़ रहे थे। मार्ग में उनकी सेना के फ्रेंच जनरल ( De Boigne ) डी. बोइने का तोपखाना लूनी नदी की बालू में फँस गया। जैसे ही इसकी सूचना महाराज की सेना में पहुँची, वैसे ही कुछ सरदारोंने तत्काल उस तोपखाने पर आक्रमण करने की सलाह दी । परन्तु एक तो आपस की झट के कारण यह मौका आपस के वाद-विवाद और विचार में ही निकल गया और दूसरे उक्त फ्रेंच जनरल ने झूठा संघि का प्रस्ताव भेज कर राठोड़-सरदारों को धोके में डाल रक्खा । इसके बाद जब बोइने के तोपखाने ने राठोड़-सेना के पड़ाव के पास पहुँच उस पर गोले बरसाने शुरू किए, तब राठोड़ों को धोके का हाल मालूम हुआ । इस पर वे भी झटपट तैयार हो कर शत्रु से भिड़ गए । परन्तु शत्रु का आक्रमण होने तक धोके में रहने से इस युद्ध में राठोड़ सफल न हो सके और इन्हें मैदान से हट कर नागोर का आश्रय लेना पड़ा। साथ ही मरहटों को विजयी देख बीकानेर और किशनगढ़ के नरेशों को भी अपने-अपने राज्यों की रक्षार्थ लौट जाना पड़ा। चित्त में अपनी निर्बलता प्रकट होजाने के कारण ईर्ष्या ने स्थान ग्रहण कर लिया था, और वे एक बार राठोड़ों को भी नीचा दिखाने को तुले हुए थे। इसीसे जयपुर-नरेश प्रतापसिंहजी ने सिंधिया को कई लाख रुपये देने का वादा कर जोधपुर पर आक्रमण करने के लिये उत्साहित किया था। किसी किसी ख्यात में यह भी लिखा है कि यद्यपि पहले तँवरों की पाटन के पास जोधपुर और जयपुर की सेनाओं ने मिलकर मरहटों का सामना किया, तथापि कुछ ही देर में जयपुर वालों ने माधोराव सिंधिया से संधि कर ली। इसीसे ठीक मौके पर अकेली राठोड़-वाहिनी को मरहटों का सामना करना पड़ा। इससे उसके बहुत से सरदार मारे गए और खेत मरहटों के हाथ रहा। १. खरवे के राव सूरजमल ने घिर जाने पर भी छः मास तक मरहटों से अजमेर के किले की रक्षा की थी। परंतु अन्त में मरहटों के मेड़ते के युद्ध में विजय प्राप्त कर लेने से वह किला उनको सौंप दिया गया ( अजमेर, पृ० १७३)। २. कहीं-कहीं ऐसा भी लिखा मिलता है कि डी. बोइने के आक्रमण के पूर्व ही बीकानेर और किशनगढ़ के नरेशों को अपने-अपने राज्यों की रक्षार्थ लौट जाना पड़ा था। इससे इस . युद्ध में मरहटों का सामना करने के लिये जोधपुर वाले अकेले ही रह गए थे । 'तवारीख ३८९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy