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________________ भारवाई का इतिहास यह देख मियाँ अन्दुन्नबी तीसरी बार फिर कलात के शासक मुहम्मद नसीर के पास मदद लेने को गया । परंतु उसने बार-बार बल्लोचों से झगड़ा करना उचित न समझा। इसी लिये उसने, अन्दु. भबी को अपने यहां से टालने के लिये, बल्लोचों के मुखिया मीर फतैअलीखाँ से लिखा-पढ़ी द्वारा मियाँ को कलात की सेना के साथ खुदाबाद (शिकारपुर ) तक लौटा देने की अनुमति मांगी । यद्यपि फतैअलीखा ने यह बात मानली, तथापि कलात की सेना को नदी के उस पार ही रखने की सूचना मी दे दी । यह सब गुप्तरूप से तय हुआ था। इसके बाद अब्दुन्नबी कलात के शासक की दी हुई ब्रोहियों की सेना के साथ सीविस्तान के हटरी नामक स्थान पर पहुँच कर ठहर गया और नदी के पार करने के पूर्व जोधपुर के राजा की, जिसको शायद उसने पहले ही गुप्तरूप से मदद के लिये लिख भेजा था, सेना के आने की राह देखने लगा । परंतु इसी बीच उसके साथ के सैनिक, आस-पास के गांवों को उजड़े हुए देख, रसद और रुपयों के लिये गड़-बड़ मचाने और अब्दुन्नबी को वहीं छोड़ कर चले जाने का विचार करने लगे। यद्यपि अन्दुन्नबी ने राजपूतों की सेना को शीघ्र ले आने के लिये आदमी भेजे थे, तथापि राजपूतों ने कहला दिया कि जब तक वह ( मियाँ ) नदी पार न होलेगा, तब तक वे उसकी मदद को न आवेंगे । इसी समय वोही सैनिक बागी हो गए और स्वयं अब्दुन्नबी के सामान को लूट कर वहीं से अपने देश को लौट गए । इसके बाद अब्दुन्नबी अपनी रक्षा के लिये वहां से डेराह प्रांत की तरफ़ चला गया । जब राजपूत-सेना को, जो अपनी सरहद पर मियाँ का रास्ता देखती थी, उसके नदी के उस पार से ही चले जाने का समाचार मिला, तब वह भी वापस राजधानी को लौट गई । यह घटना हि० स० ११६७ ( ई० स० १७८३ ) की है। 'फेरे नामे' का लेखक लिखता है कि जब हि० स० ११६८ (ई० स० १७८४ ) ? में हैदराबाद के किले पर मीर फतैअलीखाँ का अधिकार हो गया, तब कल्होरा का कुटुम्ब, जो वहां रहता था, (अबिसीनिया-वासी गुलाम ) शालमी के साथ जोधपुर भेज दिया गया; क्योंकि वहां पर पहले से ही मियां अब्दुन्नबी का लड़का रहता था। परंतु इसमें की कुछ बातें मारवाड़ की ख्यातों से नहीं मिलती हैं और इसके सनों में भी गड़बड़ नज़र आती है । उनमें मारवाड़-नरेश का बीजड़ के कुटुम्बियों को हराकर उमरकोट लेना लिखा है और उस समय के कल्होरा-शासक की स्थिति से भी इसी बात की पुष्टि होती है। क्योंकि वह स्वयं ही उस समय परमुखापक्षी हो रहा था । ऐसी हालत में उमरकोट का टालपुरों से लेना और उसकी रक्षा करना विना तलवार के बल के असम्भव था । हाँ, यह सम्भव है कि निर्बल मियां अब्दुन्नबी ने टालपुरों के प्रभाव से बचने के लिये उनके एक नवीन शत्रु का वहां पर पैर जमाना गनीमत समम महाराज से मैत्री करली हो और महाराज ने भी भविष्य की गड़-बड़ को मिटाने के लिये उसे कुछ रुपयों की सहायता दे दी हो। (१) हिस्ट्री ऑफ सिंघ, भाग २, पृ० १४२ । (२) हिस्ट्री ऑफ सिंध, भाग २, पृ० १६५-१६८ । (३) हिस्ट्री ऑफ सिंध, भाग२, पृ० २०० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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