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________________ महाराजा अभयसिंहजी ऊदावत च्यादि मारवाड़ के कुछ सरदारों को साथ लेकर देश में उपद्रव मचा रहे हैं । उन्होंने गोढवाड़ में लूट-मार करने के बाद सोजत और जैतारणे पर अधिकार कर लिया है और साथ ही मेड़ते पहुँच उसे भी लूट लिया है । जब यह सूचना महाराज को दिल्ली में मिली, तब यह वहां से लौट आएँ और मेड़ते पहुँच इन्होंने वहां की रक्षा. का भार मेड़तिया (माधवसिंह के वंशज ) शेरसिंह को सौंप दिया । इसके बाद चिरप्रचलित प्रथा के अनुसार जोधपुर में इनका राजतिलकोत्सव मनाया गया । इन कामों से निपटकर चैत्र में इन्होंने नागोर पर चढ़ाई की । उस समय इनके छोटे भ्राता बखतसिंहजी भी इनके साथ थे । जैसे ही इंद्रसिंह को इनके मेड़ते और रैण होते हुए खजवाने पहुँचने की सूचना मिली, वैसे ही उसने अपने पुत्र को सेना देकर इनका सामना करने के लिये मूँडवे की तरफ़ रवाना किया । परन्तु वहां पहुँचने पर जब उसे महाराज की विशाल सेना का हाल मालूम हुआ, तब वह विना लड़े ही भागकर नागोर लौट गया । इसके बाद महाराज ने आगे बढ़ नागोर को घेर लिया । यद्यि कुछ दिन तक इंद्रसिंह ने भी इनका सामना बड़ी वीरता से किया, तथापि अन्त में नगर पर महाराज का अधिकार हो जाने से वह किला खाली कर इनकी शरण में चला आया । महाराज ने उसके निर्वाह के लिये कुछ गांव निकालकर नागोर का अधिकार अपने छोटे भ्राता बखतसिंहजी को देना निश्चित किया । इसीके साथ उन्हें 'राजाधिराज' १. महाराज के, वि० सं० १७८१ ( चैत्रादि १७८२ ) की आषाढ़ सुदी ११ के, दिल्ली से, दुर्गादास के पुत्र अभयकरण के नाम लिखे पत्र से भी इस बात की पुष्टि होती है । २. वि० सं० १७८१ की मँगसिर बदी ७ के महाराज के दिल्ली से लिखे अभयकरण के नाम के पत्र से इसकी पुष्टि होती है । ३. वि० सं० १७८२ की फागुन वदी ६ के एक पट्टे से उस समय महाराज का निवास जालोर में होना प्रकट होता है । इस पट्टे में इनके महाराजकुमार का नाम जोरावरसिंह लिखा है । ४. वि० सं० १७८६ की सावन बदी ८ के स्वयं राजाधिराज बखतसिंहजी के, नागोर से लिखे, पंचोली बालकृष्ण के नाम के पत्र से प्रकट होता है कि नागोर का वास्तविक अधिकार उनको वि० सं० १७८६ की सावन बदी १ से मिला था । परन्तु वि० सं० १७८४ ( चैत्रादि संवत् १७८५ ) की आषाढ़ सुदी ६ के आनन्दसिंहजी के पत्र से इस बात का पहले से ही तय हो जाना सिद्ध होता है । उस पत्र में उन्होंने अपने हक़ पर भी उदारता से विचार करने की प्रार्थना की है । ३३३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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