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________________ जोधपुर के राष्ट्रकूट नरेशों और उनके वंशजों का प्रताप बीसवीं शताब्दी के यूरोपीय महायुद्ध के समय भी जोधपुर के रिसाले ने जो वीरता दिखलाई थी, उस की ब्रिटिश और भारत गवर्नमेंट ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की थी । उदाहरणके लिये ई० सन् १८१८ की २३ सितंबरकी घटनाका विवरण ही पर्याप्त होगा। ___ उस समय टर्की के शत्रु पक्ष में मिल जाने से मिस्र ( इजिप्ट ) के रणस्थल में भीषण युद्ध हो रहा था । इसी से ई० सन् १९१८ के मार्चमें जोधपुर-रिसाले को पश्चिम के रणक्षेत्र से हटाकर पूर्व के रणक्षेत्र में भेजा गया । जिस समय यह रिसाला हैफा के सामने पहुंचा, उस समय उस नगर को टर्की के युद्ध विशारदों ने पूर्ण रूप से सुरक्षित कर रक्खा था और वे इस रिमाले को देखतेही वहां के सुरक्षित मोरचों में बैठ भीषण नाद के साथ आग उगलनेवाली अपनी तोपों से इस पर गोले बरसाने लगे । वहां पर जोधपुर रिसाले के और हैफा के बीच नदी की प्राकृत बाधा होने से शत्रु की स्थिति और भी सुरक्षित हो रही थी । यह देख अनुभवी और कुशल ब्रिटिश सेनापति भी एका एक आगे बढ़ने की हिम्मत न करसके । परन्तु मारवाड़ के वीरों को शत्रु के सामने पहुँच पीछे पैर रखना सह्य न हुआ। इसी से इन्होंने अपने सेनापति की अधिनायकता में अपने चमचमाते हुए भालों को सम्हाल कर शत्रु पर आक्रमण कर दिया । इन्हें इस प्रकार मत्यु को आलिंगन करने के लिये आगे बढ़ते देख, शत्र ने इन्हें नदी के उस पार रोक रखने के लिये, अपनी गोला-वृष्टि को और भी तीव्रतम कर दिया। परन्तु जोधपुर-रिसाले ने इसकी कुछ भी परवाह न की और कुछ ही देर में नदी, शत्रु की गोला-वृष्टि और उसके सुदृढ़ मोरचों की बाधाओं को पार कर हैफा नगर पर अधिकार कर लिया। इस युद्ध में राजपूतों के भालों से अनेक तुर्क योद्धा मारे गए और करीब ७०० जिन्दा पकड़े गए। इसी प्रकार ई० स० १६१८ की १४ जुलाई के जार्डन की घाटी के युद्ध में भी जोधपुर के रिसाले ने अद्भुत वीरता दिखलाई थी' । १. इन कार्यों का उल्लेख ब्रिटिश सेनापतियों के खलीतों ( Despatches ) में और भारत के उस समय के वाइसराय लार्ड चेम्सफोर्ड की २० नवंबर १६२० को जोधपुर की वक्तृता में विशद रूपसे मिलता है । वायसराय ने अपने भाषण में कहा था कि "By their exploits at Haifa anni in the Jorden Valley recalled the deeds of their ancestors who fought at Tonga, Merta and Patan. The reputation wbich they have gained is well worthy of the glorious annals of Marwar.' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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