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________________ मारवाड़ का इतिहास से हाथ धोना पड़ा। इसके बाद ८ वर्ष की आयु तक यह अज्ञातवास में रहे, और इनके पैतृक-राज्य पर यवनों का अधिकार रहा । परंतु इनके स्वामि-भक्त सरदार उस समय भी प्राणों का मोह छोड़ विना नायक के ही शत्रुओं से लोहा लेते रहे । इसके बाद २० वर्षों तक इनके सरदारों और इन्होंने समय-समय पर यवनों के दांत खट्टे कर अन्त में अपने गए हुए राज्य को पुनः प्राप्त कर लिया । परंतु आश्चर्य तो उस समय होता है, जब एक मातृ-पितृ-हीन नवजात बालक कालांतर में ऐसा प्रतापी निकलता है कि जिसकी सहायता से फ़र्रुखसियर सा बादशाह दिल्ली के शाही तख़्त से हटाया जाता है और उसके रिक्त स्थान पर क्रमश: तीन नए बादशाह बिठाए जाते हैं। यहाँ पर यह प्रकट करना कुछ अनुचित न होगा कि उस संकट के समय मारवाड़ के अधिकतर सरदारों ने अपने स्वामि-धर्म का स्मरण कर बड़ी निर्भीकता से महाराज का साथ दिया था । यह उन्हीं की वीरता का फल था कि औरङ्गजेब जैसा प्रबल बादशाह भी मारवाड़ राज्य को नहीं पचा सका, और उसके उत्तराधिकारी को उसे उगलनापड़ा। ख्यातों के अनुसार महाराज के १२ पुत्र थे १ अभयसिंहजी, २ बखतसिंहजी, ३ अखैसिंह, ४ बुधसिंह, ५ प्रतापसिंह, ६ रत्नसिंह, ७ सोनग (सोभागसिंह.) ८ रूप सिंह, ६ सुलतानसिंह, १० आनन्दसिंह, ११ किशोरसिंह, १२ रायसिंह । इनमें से बड़े १. रफीउद्दरज़ात ने १५ जमादिउल आखिर हि० स० ११३१ को ( अपने राज्य के पहले वर्ष में ) महाराजा अजितसिंहजी के पुत्र प्रतापसिंह को १,००० जात और ५०० सवारों के मनसब की जागीर दी थी। यह बात अमीरउल उमरा के परवाने से ज़ाहिर होती है । उसी में महाराज के पुत्र चतुरसिंह की, जिसको पहले से यह मनसब था, मृत्यु का भी उल्लेख है। २. इनका जन्म वि० सं० १७६५ की आषाढ़ सुदी ५ ( ई० सन् १७०८ की ११ जून) को हुआ था ( देखो अजितोदय, सर्ग १७, श्लो० २०-२१)। ३. इनका जन्म वि० सं० १७६६ की आश्विन बदी ११ ( ई० सन् १७०६ की १८ सितंबर ) को हुआ था। ४. इनका जन्म वि० सं० १७६७ की श्रावण बदी ३० ( ई० सन् १७१० की १५ जुलाई ) ___को हुआ था । ( देखो अजितोदय, सर्ग १६, श्लो० ६३-६४ )। वि० सं० १७६० की आषाढ़ बदी १ के अजितसिंहजी के ताम्रपत्र में इनके बड़े महाराजकुमार का नाम उद्योतसिंहजी लिखा है । उनका जन्म वि० सं० १७५६ की आश्विन वदि ३० को हुआ था। परंतु अनुमान होता है कि उनकी मृत्यु बाल्यावस्था में ही हो जाने से उस समय के ग्रन्थों में अभयसिंहजी ही ज्येष्ठ राजकुमार मान लिए गए थे। ३२८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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