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________________ महाराजा अजितसिंहजी परन्तु इतना सब कुछ होने पर भी उसकी आगे बढ़ने की हिम्मत न हुई । यह देख बादशाह उससे नाराज हो गया । अतः शम्सामुद्दौला को अपना दरबार में जाना ही बन्द करना पड़ा । इसके बाद बादशाह ने हैदरकुलीखाँ को इस कार्य के लिये तैयार किया । यद्यपि पहले तो उसने बादशाह के सामने अनेक प्रबंध संबंधी प्रार्थनाएँ उपस्थित कर इस कार्य में बड़ी तत्परता दिखाई, तथापि अन्त में जब सारा शाही तोपखाना ही उसके अधिकार में दे दिया गया, और उसके डेरे भी नगर से बाहर खड़े करवा दिए गए, तब उसने आगे बढ़ने से एकाएक इनकार कर दिया । इसके बाद कमरुद्दीन खाँ को भी इसी प्रकार अपनी असमर्थता प्रकट करनी पड़ी । अन्त में बहुत कुछ कहा सुनी के बाद नुसरतयारखाँ ने किसी तरह महाराज के विरुद्ध चढ़ाई की । परन्तु इसी बीच महाराज स्वयं ही अजमेर से जोधपुर लौट आएं । इसलिये यह झगड़ा यहीं शान्त हो गया । इस घटना के क़रीब एक मास बाद ( ई० सन् १७२२ की २१ मार्च = वि० सं० १७७६ की चैत्र सुदी १५ को ) महाराज ने बादशाह के पास अपने प्रतिनिधि भेजकर कहलाया कि तख़्त पर बैठते समय आपने गुजरात और अजमेर के उपद्रव को दबाने के लिये उक्त दोनों सूबे मुझे सौंपे थे । इसके बाद जब सारे उपद्रव शांत हो चुके, तब गुजरात का सूबा हैदरकुली को दे दिया गया । फिर भी मैंने इस पर कुछ आपत्ति नहीं की । परन्तु अब आप अजमेर का सूबा भी मुझसे लेना चाहते हैं । यह कहाँ तक न्याय्य है । इसे आप स्वयं ही सोच देखें । 1 'अजितोदय' में लिखा है कि इसी अवसर पर बेर- नरेश जयसिंहजी ने महाराजकुमार के बढ़ते हुए प्रताप को देख अपने प्रधान पुरुषों को महाराज के पास भेजा, और उनके द्वारा बहुत कुछ कह सुन और क्षमा मांगकर महाराज से मैत्री कर ली । इसी समय महाराज ने आँबेर-नरेश की तरफ़ से आए हुए खंगारोत श्यामसिंह के बड़े पुत्र को नराणा गांव जागीर में दिया था । ( देखो सर्ग ३० श्लो० २२-२६ )। १. लेटर मुग़ल्स, भा० २, पृ० ११० १११ । उक्त इतिहास में यह भी लिखा है कि निज़ामुल्मुल्क के दक्षिण से दिल्ली के निकट पहुँचने की सूचना मिलने से ही महाराज अजमेर से जोधपुर लौट गए थे । 1 २. लेटर मुगुल्स, भा० २, पृ० १११ । उक्त इतिहास में यह भी लिखा है कि अजित सिंहजी बादशाह को यह भी सूचित किया था कि यदि मुज़फ्फर अली यहाँ प्रा जाता, तो मैं उसे अजमेर भी सौंप देता । परन्तु वह तो यहाँ तक पहुँचा ही नहीं । इसके अलावा नारनौल पर के हमले का कारण केवल मेवातियों के साथ का व्यक्तिगत मनोमालिन्य ही था । शत्रु लोग इससे बादशाह से विरोध करने का तात्पर्य बतलाकर अन्याय करते हैं । ३२३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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