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________________ मारवाड़ का इतिहास इन कामों से निपटकर महाराज ने राजकुमार अभयसिंहजी को और भंडारी रघुनाथ को सांभर की तरफ़ भेजा । उन्होंने वहाँ के शाही फौजदार को भगाकर साँभर पर अपना अधिकार कर लिया । इसी प्रकार महाराज की सेनाओं ने डीडवाना, टोडा, झाडोद और अमरसर पर भी कब्जा कर लिया । महाराज के इस प्रकार बढ़ते हुए प्रताप को देखकर बादशाह ने आगरे के शासक सादतखाँ को अजमेर की सूबेदारी देने के साथ ही इन पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी । परन्तु इस कार्य में एक भी शाही अमीर उसका साथ देने को तैयार न हो सका। इससे उसकी चढ़ाई करने की हिम्मत न हुई । इसके बाद क्रमशः शम्सामुद्दौला, कमरुहीनखाँ बहादुर और हैदरकुलीखाँ बहादुर को इस कार्य के लिये तैयार किया गया । परंतु इनमें के प्रत्येक व्यक्ति ने चढ़ाई करने का वादा करके भी दिल्ली से आगे बढ़ने का साहस नहीं किया । खासकर शम्सामुद्दौला तो अपना पेशखेमा दिल्ली के बाहर खड़ा करवाकर भी इधर-उधर के बहाने कर नगर से बाहर न निकला । वह अच्छी तरह जानता था कि एक तो इस समय शाही खजाना खाली होने से सैनिकों के वेतन और रसद आदि का प्रबन्ध करना ही कठिन होगा। दूसरे यदि इस कार्य में असफलता हुई, तो दूसरों को भी सिर उठाने का साहस हो जायगा । इन हालतों में महाराजा अजितसिंहजी जैसे प्रबल शत्रु से भिड़ना मूर्खता ही होगी। ___ कहीं-कहीं ऐसा भी लिखा मिलता है कि बुद्धिमान् और दूरदर्शी शम्सामुद्दौला को भय था कि यदि ऐसे अवसर पर महाराज ने स्वयं ही दिल्ली पर चढ़ाई कर दी, तो यह घुन लगी हुई शाही इमारत बहुत शीघ्र गिरकर नष्ट हो जायगी । इसलिये जहाँ तक संभव हो सका, उसने नम्रतापूर्ण पत्र भेज-भेजकर महाराज को संतुष्ट रक्खा, और इस प्रकार दिल्ली को भावी संकट से बचा लिया । १. अजितोदय, सर्ग ३०, श्लो० २-५ । २. मुंतख़िबुल्लुबाब, भा० २. पृ० ६३६-६३७ । ३. लेटर मुगल्स, भा॰ २, पृ० १०८, सैहरुल मुताख़रीन, पृ० ४५४ और मुंतखिबुल्लुबाब, भा॰ २, पृ०६३७ । ४. 'सैहरुल मुताख़रीन' से भी इस बात की बहुत कुछ पुष्टि होती है । ( देखो पृ० ४५४)। ५. ख्यातों में लिखा है कि वि० सं० १७७७ में बादशाह रतलामनरेश राजा मानसिंहजी से नाराज़ हो गया और उसने उनसे रतलाम का अधिकार छीन लिया । इस पर उन्होंने महाराजा अजितसिंहजी से सहायता की प्रार्थना की। महाराज ने बादशाह से कह कर ३२९ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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