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________________ महाराजा अजितसिंहजी को हुसैनअली से मिलकर बातचीत तय करने के लिये भेज दिया, और स्वयं सेना सजाकर नगर से बाहर राईकेबाग के पास डेरा लगाया । खींवसी ने मेड़ते के पास (बुंध्यावास में )) पहुंचं शाही सेना-नायक से संधि कर ली । इस पर वह महाराजकुमार अभयसिंहजी' को लेकर दिल्ली लौट गया । वहाँ पर वि० सं० १७७१ की सावन बदी ४ ( ई० सन् १७१४ की १९ जुलाई ) को बादशाह ने महाराज-कुमार से मिलकर उनका बड़ा आदर-सत्कार किया । 'बाँबे गजेटियर' में लिखा है कि इसी अवसर पर बादशाह ने महाराज-कुमार को सोरठ की हकूमत (फौजदारी) दी । इस पर वह स्वयं तो बादशाह के पास ही रहे, १. फारसी-इतिहासों में हुसैनअली का मारवाड़ के गाँवों को लूटते हुए मेड़ते पहुँचना लिखा है। २. बादशाह फर्रुखसियर के सने जलूस १ की ११ सफ़र ( वि० सं० १७७० की फागुन सुदी १२ ई. सन् १७१४ की १५ फरवरी) का महाराज के नाम का एक फ़रमान मिला है । उसमें अजितसिंहजी के ( पहले के अनुसार ही) मनसब और रियासत के अधिकार के अङ्गीकार करने का उल्लेख है। कहीं-कहीं ऐसा भी लिखा मिलता है कि मीरजुमला ने ही दोनों सैयद-भ्राताओं को एक स्थान से हटाने के लिये बादशाह से कहकर हुसैनअली को जोधपुर पर चढ़ाई करने के लिये भिजवाया था। साथ ही उसने एक फरमान महाराज के नाम भी भिजवाया था। उसमें उसने हुसैनअली को मार डालने का आग्रह किया था। इसके बाद बादशाह ने अब्दुल्लाला को पकड़ने की कोशिश शुरू की । परंतु इस बात के प्रकट हो जाने से उसने अपने भाई ( हुसैनअली ) को शीघ्र लौट आने के लिये लिख भेजा । इसी समय महाराज ने हुसैनअली को उसके मारने के लिये आया हुआ शाही फरमान भी दिखला दिया । इस पर वह महाराज से संधि कर तत्काल लौट गया । 'मुंतखिबुललुबाब' से भी इस बात की बहुत कुछ पुष्टि होती है। (देखो भा० २, पृ० ७३८)। 'अजितोदय' में लिखा है कि जब बादशाह के कहने से हुसैनअली मारवाड़ की तरफ़ चला आया, तब पीछे दिल्ली में मीर जुमला के बहकाने से बादशाह ने उसके बड़े भाई को मारडालने का प्रबन्ध किया । परन्तु इसमें उसे सफलता नहीं हुई । इसकी सूचना पाते ही हुसैनअली महाराज से संधि कर दिल्ली लौट गया । ( देखो सर्ग २१, श्लो. १-३८) उक्त काव्य में इस चढ़ाई के कारणों में मोहकमसिंह का दिल्ली में मारा जाना भी एक कारण माना है । परन्तु कुछ भी हो, इतना तो मानना ही पड़ता है कि इस बार की संधि में मारवाड़ के वीरों का वह पूर्व का-सा पौरुष प्रकट न हो सका । ३. वि. सं. १७७० (चैत्रादि १७७१ ) की ज्येष्ठ बदी १४ के, महाराज के, खींवसी के नाम लिखे पत्र से प्रकट होता है कि इसके एक दिन पूर्व हुसैनअली के तीन अमीर आकर अभयसिंहजी से मिले और उन्हें हाथी पर चढ़ाकर नबाब के पास ले गए। वहाँ पर उसने इनका बड़ा सत्कार किया, और १ हाथी, १ पोशाक तथा १ कलगी भेट की। ३०७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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