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________________ महाराजा अजितसिंहजी बात मानलेनी पड़ी । इसके बाद यह रायसिंहजी को साथ लेकर सांभर पहुंचे। इसकी सूचना पाते ही आंबेर-नरेश जयसिंहजी, राजा उदयसिंहजी और राव मनोहरदास शेखावत वहाँ आकर इनसे मिले । इसी समय बादशाह मोइजद्दीन भी लाहौर से दिल्ली की तरफ़ चला आया था । परंतु शीघ्र ही उसे हाजीपुर से शाहजादे (अजीमुश्शान के पुत्र ) फर्रुखसियर की चढ़ाई का समाचार मिल जाने से उसने महाराज से छेड़छाड़ करना उचित न समझा । महाराज भी आँबेर-नरेश जयसिंहजी आदि के लौट जाने पर जोधपुर चले आएँ। कुछ दिन बाद जब मोइजुद्दीन जहाँदारशाह को कैद कर फर्रुखसियर बादशाही तख़्त पर बैठा, तब राव इंद्रसिंह का पुत्र मोहकमसिंह बगड़ी के ठाकुर दुर्जनसिंह १. महाराज के, दयालदास के नाम लिखे, एक पत्र में ( इसका नीचे का भाग फटा हुआ है) लिखा है कि हमारे राजसिंहजी को बुलाने पर उन्होंने आप न पाकर अपने तीनों लड़कों को भेजने का लिखा । इस पर हमने किशनगढ़ आदि पर अधिकार कर रूपनगर को भी घेर लिया । जब किला फ़तह हो जाने की सूरत हुई, तब राजसिंहजी ने अपना कुसूर मानकर माफ़ी माँग ली और आश्विन बदी १ को वह हमारे पास चले आए । साथ ही उन्होंने हाथी और तोपें भी नज़र की । वि. सं. १७६६ ( चैत्रादि संवत् १७७०) की वैशाख बदी ६ के महाराज के लिखे अपने फ़ौजबख़्शी पंचोली बालकृष्ण के नाम के पत्र से उस समय सरवाड़ आदि पर महाराज का कब्ज़ा होना प्रकट होता है । महाराज के वि. सं. १७६६ की मँगसिर बदी १० के लिखे, दयालदास के नाम के पत्र में लिखा है कि आज राय रघुनाथ का पत्र आया । उससे ज्ञात हुआ कि बादशाह ने हमारी कही सब बातें मान लीं हैं । उसने अहमदाबाद का सूबा और सोरठ, ईडर तथा पट्टन का दरोबस्त हमको दिया है । और हमने उज्जैन का सूबा और मंदसोर आदि का दरोबस्त राजा जयसिंहजी को दिलवाया है। साथ ही इंद्रसिंहजी और राजसिंहजी को क्रमशः नागोर और किशनगढ़ तथा रूपनगर दिलवाया है । जिन-जिन लोगों ने हमारी सेवा की थी उन उनके सब काम ठीक तौर से करवा दिए हैं । ३. 'राजरूपक' में इन घटनाओं का उल्लेख नहीं है। 'वीरविनोद' में प्रकाशित मारवाड़ के इतिहास में किशनगढ़ की चढ़ाई का वि. सं० १७६८ के भादों ( ई• सन् १७११ के सितम्बर ) में होना लिखा है । ४. 'अजितोदय', सर्ग २०, श्लो. १-२१ । उक्त काव्य में यह भी लिखा है कि बादशाह ने जयपुर और जोधपुर के नरेशों का साँभर में एकत्रित होना सुनकर ही लाहौर से लौटने में शीघ्रता की थी। ५. फर्रुखसियर वि. सं. १७६६ की माघ बदी १. (ई• सन् १७१३ की १० जनवरी) को बादशाह हुआ था। ३०५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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