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________________ मारवाड़ का इतिहास --------- वि० सं० १७५१ ( ई० मन् १६६४ ) में राठोड़ों ने ओर भी जोर पकड़ा । इस पर बहुत से शाही हाकिम इनको अपने-अपने प्रदेशों की आमदनी का एक भाग देकर अपना बचाव करने लगे I कुछ दिन बाद शुजाअतखाँ ने काजिमखाँ को अपने पास गुजरात में बुला लिया । इस पर वह सोजत के लश्करीख़ाँ को जोधपुर का प्रबन्ध सौंप वहाँ चला गया । महाराज उस समय पीपलोद के पहाड़ों में थे, इसलिये चाँपावत उदयसिंह आदि ने लश्करीख़ाँ को गोड़वाड़ के युद्ध में मार भगाया। इसकी सूचना पाते ही शुजाअतखाँ ने काज़िम को फिर जोधपुर भेज दिया । ख्यातों में लिखा है कि इसी वर्ष महाराज ने फिर से मुकुंददास आदि को दुर्गादास के पास भेजा । यह लोग उसे समझाकर महाराज के पास ले आए। इसके बाद सरदारों ने फिर से इधर-उधर के यवन- शासकों को दबाकर दण्ड के रुपये वसूल करने शुरू किऐ । वि० सं० १७५२ ( ई० सन् १६६५ ) में महाराज के वीरों और मुगल-सेनापतियों के बीच किरमाल की घाटी के पास युद्ध हुआ । इसमें राठोड़ों ने पर्वत का सहारा पा अच्छी वीरता दिखाई । इसके बाद महाराज बीजापुर की तरफ चले गए । इसी बीच बादशाह ने शाहज्रादे मोहम्मद अकबर के बालकों को लौटाने के लिये शुजाअतखाँ के द्वारा दुर्गादास से फिर बातचीत प्रारंभ की, और उसे मनसब देने का वादा भी किया । परंतु दुर्गादास ने महाराज को मनसब मिलने के पहले स्वयं उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया । इसी वर्ष लोगों के सिखलाने से मेवाड़ के महाराजकुमार अमरसिंहजी ने फिर से पिता के साथ विरोध करने का विचार किया । यह देख महाराना जयसिंहजी ने अपने भाई १. अजितोदय, सर्ग १५, श्लो० १६-२७ । इस काव्य में पीछे से महाराज का भी युद्ध-स्थल जाना लिखा है । ' प्रजितग्रन्थ' में इसी वर्ष की फागुन बदी १० को काज़िमबेग़ का मरना और हामिदखाँ को उसका पद मिलना लिखा है । ( देखो पृ० ४१४) । २. अजितग्रन्थ, पृ० ४०५-४०८ । ३. ‘राजरूपक' में दुर्गादास का अकबर के पुत्र को अपने पास रखकर उसकी बेगम को बादशाह १४१ ) । के पास भेज देना लिखा है (देखो पृ० ४. इसकी पुष्टि 'राजपूताने के इतिहास' से भी होती है । उसके तीसरे भाग के ०६०२ पर लिखा है कि, "इस प्रकार वि० सं० १७४८ ( ई० सन् १६६१ ) के अन्त के स पास इस गृह-कलह की समाप्ति हुई । परन्तु दोनों के दिल साफ न हुए, इत्यादि” । २८४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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