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________________ महाराजा अजितसिंहजी तरफ़ चले गएं। जैसे ही इसकी सूचना बादशाह को मिली वैसे ही वह चित्तौड़ की रक्षा का भार शाहजादे मोहम्मद अकबर को देकर, चैत्र बदी १ ( ई० सन् १६८० की ६ मार्च ) को उदयपुर से अजमेर को लौट चला और वि० सं० १७३७ की चैत्र सुदी २ ( २२ मार्च ) को वहाँ आ पहुँचा । इसी प्रकार जब इन्द्रसिंह को राठोड़-सरदारों के बीलाड़े की तरफ जाने की सूचना मिली, तब वह भी बदनोर से इनके मुकाबले को चली । खेतासर के तालाब के पास दोनों की मुठभेड़ हुई । दिन-भर तो दोनों तरफ़ के वीरों ने जी खोलकर तलवार चलाई । परन्तु सायंकाल के समय इन्द्रसिंह की सेना के पैर उखड़ गएँ । इसके बाद दुर्गादास आदि वीर चेराई गाँव में पहुँचे, और जोधपुर पर चढ़ाई करने का विचार करने लगे। इसकी सूचना पाते ही पहले तो इन्द्रसिंह ने राठोड़ों को अपनी तरफ़ मिलाने की चेष्टा की। परन्तु जब अनेक प्रलोभन दिखलाने पर भी इसमें उसे सफलता नहीं हुई, तब वह स्वयं जोधपुर चला आया, और यहीं से बादशाह को सारा हाल लिख भेजा । इस पर उसने तत्काल नवाब मुकर्रमखाँ को जोधपुर की तरफ रवाना किया। अतः जिस समय राठोड़ों की सेना जोधपुर को घेरकर उस पर अधिकार करने का उद्योग कर रही थी, उसी समय वह यहाँ आ पहुँचा । इस पर ये लोग जोधपुर का घेरा उठाकर मेवाड़ की तरफ़ चले गए । यद्यपि नवाब और इन्द्रसिंह ने बहुत कुछ इनका पीछा करने की चेष्टा की, तथापि ये उनके हाथ न आएं। १. अजितोदय, सर्ग ६, श्लो० २७ । २. मासिरुलउमरा, पृ० १६० । ३. 'राजरूपक' में इस घटना का वि० सं० १७३७ की ज्येष्ठ सुदी १० को होना लिखा है । ४. अजितोदय, सर्ग ६, श्लो० २८-४७ । 'राजरूपक' में इस युद्ध का वि० सं० १७३७ की जेष्ठ सुदी १३ को होना लिखा है। ५. ख्यातों में लिखा है कि जब दुर्गादास आदि के सामने राव इन्द्रसिंह को सफलता की प्राशा नहीं रही, तब उसने पाली ठाकुर चांपावत उदैसिंह और कुंपावत प्रतापसिंह (सुंदर सेणोत) को उन्हें समझाने के लिये भेजा । परन्तु दुर्गादास ने इनकी बात मानने से इन्कार कर दिया और उदैसिंह को धिक्कारते हुए कहा कि तुम महाराजा जसवन्तसिंहजी की कृपा से ही पाली की जागीर का उपभोग करते थे, उसका बदला क्या इसी प्रकार देते हो ?, यह सुन वह बहुत लजित हुआ और राव इन्द्रसिंह का साथ छोड़ दुर्गादास के साथ होगया । ६. अजितोदय, सर्ग १०, श्लो० १-१६ । 'मासिरे-आलमगीरी' में बीलाड़े और जोधपुर की इस चड़ाई का उल्लेख नहीं मिलता है । २६३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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