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________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १०५१ के सोलंकी मूलराज के ताम्रपत्र से ज्ञात होता है कि उसने साँचोर के पवारों को हराकर उक्त प्रदेश पर अधिकार कर लिया था और वे इसके सामंत हो' गए थे । इसी प्रकार वि० सं० १०७८ के करीब नाडोल के चौहानों ने भी सोलंकी भीमदेव की सामंती स्वीकार कर ली थी। सांभर से सोलंकी जयसिंह के समय का एक लेख मिला है । इससे वि० सं० ११५० और ११६६ के बीच वहाँ पर उसका अधिकार होना पाया जाता है। वि० सं० १२०७ के करीब सोलंकी कुमारपाल ने साँभर पर चढ़ाई कर वहाँ के चौहान राजा अर्णोराज को हराया और नाडोल पर भी अपना हाकिम नियत कर दिया । इस कुमारपाल का वि० सं० १२०६ का एक लेख पाली के सोमेश्वर के मंदिर में भी लगा है । वि० सं० १२१८ के किराडू के लेख से ज्ञात होता है कि किराडू के परमार शासक सोलंकियों के सामंत थे । आबू के परमार सोमसिंह के, वि० सं० १२८७ के, लेख से पता चलता है कि वह गुजरात के सोलंकी भीम का सामंत था। उस समय गोड़वाड़ की तरफ़ का देश भी इसी सोमसिंह के अधिकार में था। इसी प्रकार कुछ काल के लिये देसूरी पर भी सोलंकियों का अधिकार रहा था। ख्यातों में लिखा है कि एक समय मारवाड़ ( खास कर मंडोर और नागोर) पर नाग-वंशियों का राज्य भी रहा था। नागकुंड, नागादरी, नागोर, नागाणा आदि नामों में पहले नाग शब्द लगा होने से लोग इनका नामकरण उसी वंश के संबन्ध से हुआ मानते हैं और उनका अनुमान है कि मंडोर का पर्वत भी उन्हीं के सम्बन्ध से भोगिशैल' कहाता है। इसी प्रकार जोहिया ( यौधेय ), दहिया और गौड़वंशी राजपूत भी इस देश के अधिकारी रह चुके हैं । इनमें से जोहिया लोग बीकानेर की तरफ़ थे । दहियों के दो लेख किनसरिया (पर्बतसर से ४ मील उत्तर ) के केवाय माता के मंदिर से मिले हैं। इनमें का एक वि० सं० १०५६ का और दूसरा वि० सं० १३०० १. इसके बाद सांभर के चौहान राजा वीसलदेव ( विग्रहराज द्वितीय ) ने सोलंकी मूलराज पर चढ़ाई कर उसे कच्छ की तरफ भगा दिया था। २. संस्कृत साहित्य में भोगि शब्द भी नाग का पर्यायवाची है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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