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________________ महाराजा अजितसिंहजी स्वर्गवासी महाराज की दोनों रानियों को भी रूपसिंह राठोड़ की हवेली से लाकर नूरगढ़ में रख दे, और यदि उनके साथ के राठोड़ इसमें बाधा दें, तो उन्हें दंड दे । इसी के अनुसार वह शाही सैनिकों को लेकर राठोड़ों के स्थान पर जा पहुँचा, और उनसे बादशाह की आज्ञा के पालन करने का आग्रह करने लगा । परन्तु स्वामि-भक्त राठोड़ इसकी कुछ भी परवा न कर युद्ध के लिये तैयार हो गए। __जैसे ही यह समाचार महाराज की दोनों रानियों के पास पहुँचा, वैसे ही वे भी मर्दाना वेशकर अपने सुभटों का युद्ध देखने और उन्हें उत्साहित करने को मैदान में आ खड़ी हुईं । यह देख शाही सेना ने राठोड़ों पर हमला कर दिया । इस पर दोनों तरफ़ से घमसान युद्ध मच गया । पहले पहल भाटी रघुनाथ ( की अध्यक्षता में १०० राजपूत वीरों) ने बड़ी वीरता से यवन-वाहिनी का सामना किया। इस युद्ध में दोनों तरफ के अनेक योद्धा मारे गए । इसके बाद जब राठोड़ों की संख्या बहुत कम रह गई, तब दुर्गादास आदि बचे हुए सरदारों ने दोनों रानियों के क्षत-विक्षत शरीरों को यमुना में १. बादशाह ने इन्द्रसिंह को जोधपुर का राज्य देने के साथ ही दिल्ली में की महाराज की हवेली भी दे दी थी। इसलिये ये लोग किशनगढ़-नरेश की हवेली में ठहरे थे । 'अजितोदय' में सरदारों का यमुना के किनारे ठहरना लिखा है । (देखो सर्ग ६, श्लो० ५८)। २. मासिरेआलमगीरी, पृ० १७७-१७८; अजितोदय, सर्ग ७, श्लो० १०-१८ । ३. अजितोदय, सर्ग ७, श्लो० १६-२० । 'राजरूपक' में लिखा है कि रानियों ने अपने सिर कटवाकर पति का अनुगमन किया था। किसी-किसी ख्यात में इनके सिर काटनेवाले का नाम जोधा चंद्रभान लिखा है । यदुनाथ सरकार ने अजितसिंहजी की माता का मेवाड़ राजवंश की होना और उसका दिल्ली से मारवाड़ पहुँच महाराना से सहायता माँगना लिखा है । (हिस्ट्री ऑफ़ औरंगजेब, भा० ३, पृ० ३७७-३७८ और ३८३-३८४) यह ठीक प्रतीत नहीं होता। वी० ए० स्मिथ ने भी अपनी 'ऑक्सफर्ड हिस्ट्री ऑफ़ इन्डिया' में करीब करीब यही बात लिखी है। (देखो पृ० ४३८)। बालकृष्ण दीक्षित-रचित 'अजित-चरित्र' में लिखा है प्रेषणीयावतो देशे धात्रीभ्यां सहितावुभौ ; युद्धेस्मिन्गतिरस्माकं खड्गेनैव न संशयः। तदा क्षत्रिया विस्मिताः प्रोचुरेनां स्वदेशेषु-युक्तो गमः श्रीमतीनाम् ; तथा नेति चोक्तं गमः पुत्र योस्ते ध्वजिन्या समं कारयामासुरेते । (सर्ग ८, श्लो० ११-१२।) २५७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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