SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 334
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराजा अजितसिंहजी इधर यह हो रहा था, और उधर बादशाह औरङ्गजेब महाराजा जसवंतसिंहजी के मरने की सूचना पाते ही स्वर्गवासी महाराज के कुटुम्ब से बदला लेने का प्रबन्ध करने लगा । यद्यपि महाराजा जसवंतसिंहजी की बारबार की छेड़छाड़ से वह प्रारंभ से ही उनसे मन-ही-मन द्वेष रखता था, तथापि उनके जीते-जी उनसे खुलकर शत्रुता करने की उसकी हिम्मत न होती थी । परन्तु महाराज के इस प्रकार निस्संतान मर जाने से उसे अच्छा मौका मिल गया । इसलिये वि० सं० १७३५ की माघ सुदी १२ ( ई० सन् १६७६ की १३ जनवरी ) को उसने ख़िदमतगुज़ारखाँ को जोधपुर का किलेदार, ताहिरखाँ को फ़ौजदार, शेख अनवर को अमीन ( तहसीलदार ) और अब्दुलरहीम को कोतवाल बनाकर मारवाड़ की तरफ़ रवाना कर दिया । इसके कुछ दिन बाद वह स्वयं भी मारवाड़ पर पूर्ण अधिकार करने के लिये अजमेर की तरफ़ चला । साथ ही उसने असदखा, शाइस्ताखाँ और शाहजादे अकबर को भी अपने-अपने सूबों से वहाँ पहुँचने की आज्ञाएँ भेजदीं । परन्तु औरङ्गजेब के मन में स्वर्गवासी महाराज से इतना डाह था कि उसे अपने अजमेर पहुँचने तक का बिलम्ब भी सहन न हो सका। इसी से उसने मार्ग से ही, फाल्गुन सुदी ७ ( ७ फ़रवरी ) को, खाँजहाँ बहादुर और हुसैनअलीखाँ आदि बड़े-बड़े अमीरों को मारवाड़ पर अधिकार करने के लिये आगे भेज दियो । १. मासिरेआलमगीरी पृ० १७२ । भट्ट जगजीवन रचित 'अजितोदय' नामक (३२ सर्गों के) ऐतिहासिक संस्कृत-काव्य से ज्ञात होता है कि बादशाह की आज्ञा से पहले-पहल मारवाड़ पर अधिकार करने के लिये इख्तियारखाँ नाम का अमीर अजमेर से मेड़ते आया था । परन्तु उसके आगमन की सूचना पाते ही राठोड़ वीर उसके मुकाबले को पहुँच गए । इसलिये उसे नगर के बाहर ही रुक जाना पड़ा। इसके बाद उसने पत्र द्वारा यहाँ का सारा हाल बादशाह को लिख भेजा । इसी से उसे स्वयं अजमेर की तरफ़ आना पड़ा। (सर्ग ५, श्लो० ३४-४३)। औरंगजेब ने वि० सं० १७३५ की चैत्र बदी ११ (ई. सन् १६७६ की २६ फरवरी) को इसी (इख्तियारखाँ) इफ्तखारखाँ के स्थान पर तहव्वुरखाँ को अजमेर का फौजदार नियत किया था। (मासिरेआलमगीरी, पृ० १७३)। २. मासिरेआलमगीरी, पृ० १७२ । २४६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy