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________________ मारवाड़ का इतिहास चौहानों को सोलंकियों की आधीनता स्वीकार करनी पड़ी । वि० सं० १२५६ ( ई. स. १२०२ ) के करीब कुतुबुद्दीन ने इन चौहानों के राज्य पर हमला कर उसे नष्ट कर दिया । वि० सं० १२१८ के करीब चौहानों की उसी शाखा के ( केल्हण के छोटे भाई ) कीर्तिपाल ने पँवारों से जालोरं छीनकर सोनगरा नाम की प्रशाखा चलाई थी । इस शाखा की राजधानी जालोर थी । वि० सं० १४८२ के क़रीब राव रणमल्लजी ने, राजधर को मार, इसकी समाप्ति कर दी । इसी प्रकार वि० सं० १४४४ में नाडोल से निकली साचोर के चौहानों की भी एक शाखा का पता चलता है । पोकरण से वि० सं० १०७० का एक लेख मिला है । इससे उस समय वहां पर परमारों (पँवारों ) का अधिकार होना पाया जाता है । किराडू से वि० सं० १२१८ का परमार सोमेश्वर के समय का एक लेख मिला है । उसमें परमार सिंधुराज को मारवाड़ का राजा लिखा है । इसका समय वि० सं० ६५६ के क़रीब होगा और इसने मंडोर के पड़िहारों की कमज़ोरी से मारवाड़ के कुछ प्रदेशों पर अधिकार करलिया होगा । जालोर का सिंधुराजेश्वर का मंदिर भी इसी ने बनवाया था । इसकी चौथी पीढ़ी में धरणीवराह हुआ । वि० सं० १०५३ के, हयूँडी ( गोडवाड़ परगने ) के, राठोड़ राजा धवल के लेख से ज्ञात होता है कि १. यह बात वि० सं० १९७४ के, जालोर के तोपखाने के, लेख से भी सिद्ध होती है । उस लेख में परमारों की पीढी दी हुई है । ( आजकल यह लेख जोधपुर के अजायबघर 3 रक्खा है । ) २. लेखों में जालोर के पर्वत का नाम कांचन - गिरि ( सुवर्ण-गिरि) लिखा है । अनुमान होता है कि वहां पर मिलनेवाली सुवर्ण के समान चमकीली धातु के कारण ही ( जो शायद कुछ धातुओं का मिश्रण है ) इस पर्वत का नाम कांचन - गिरि या सुवर्ण-गिरि होगया होगा; और इस पर्वत के नाम से ही चौहानों की इस शाखा का नाम सोनगरा हुआ होगा । ३. सुँधा पहाड़ी वाले मंदिर के वि० सं० १३१६ के लेख में सोनगरा शाखा के उदयसिंह को नाडोल, जालोर, मंडोर. बाड़मेर, सांचोर, गुढ़ा, खेड, रामसेन, भीनमाल और रतनपुर का स्वामी लिखा है । इसीके समय रामचंद्र ने 'निर्भयभीम व्यायोग और जिनदत्त ने 'विवेक विलास' बनाया था। इस उदयसिंह का प्रपौत्र कान्हड़देव बड़ा वीर था फरिश्ता लिखता है कि उसने खुद ही बादशाह अलाउद्दीन को अपने किले पर चढ़ाई करने का निमंत्रण दिया था और इसी युद्ध में वि० सं० १३६६ ( हि० स० ७०६ ) में वह मारा गया । इस से कुछ दिन के लिये जालोर और सिवाना चौहानों मे छूट गया । ४. 'सिंधुराजो महाराज: समभून्मरुमण्डले ।' Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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