SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराजा जसवंतसिंहजी ( प्रथम पृथ्वीसिंहजी को अपने पास भेजने का लिखी । इसी के अनुसार महाराज सिरोही की तरफ़ होते हुए अहमदाबाद चले गए, और वहाँ पर बरसात की मौसम में इन्होंने गुजरात के परगनों का दौरा कर कोली दूदा आदि उपद्रवियों को दबा दिया । इसकी सूचना पाकर बादशाह ने भी महाराज के लिये खिलप्रत भेजकर अपनी प्रसन्नता प्रकट की । इसी प्रकार ईद के त्यौहार पर भी इनके लिये खिलअत भेजा गया । १. प्रालमगीरनामा, पृ० ३३२ । २. ख्यातों से ज्ञात होता है कि जिस समय महाराज सिरोही में थे, उस समय इन्हें समाचार मिला कि भाटी राजपूतों ने जयसलमेर के रावल सबलसिंहजी की मदद पाकर पौकरण को घेर लिया है । यह सुनते ही इन्होंने राठोड़ सबलसिंह और मुहणोत नैणसी आदि को वहां जाकर शीघ्र ही भाटियों को भगा देने की आज्ञा दी । इसी आज्ञा के अनुसार ये लोग मारवाड़ में चले आए और महाराज के कुछ सरदारों को एकत्रित कर भाटियों के मुकाबले को चले । उस समय तक पौकरण के किले पर भाटियों का अधिकार हो चुका था । परन्तु राठोड़ों की सेना का आगमन सुनते ही वे स्वयं किला छोड़कर पीछे हट गए । यद्यपि रावल सबलसिंहजी स्वयं भी उनकी सहायता को पहुँच गए थे, तथापि युद्ध में भाटी, राठोड़ वीरों का मुकाबला करने का साहस न कर सके | इसके बाद महाराज की सेना ने जयसलमेर - राज्य में घुस आसणी-कोट तक लूट-मार मचा दी | अंत में इस सेना के लौट आने पर भाटियों ने एक बार फिर पौकरण पर अधिकार करने का उद्योग किया । इसीसे पौकरण स्थित राठोड़ सेना के और भाटियों के बीच मांडी के पास फिर युद्ध हुआ । यद्यपि भाटियों ने उक्त ग्राम में आग लगाकर बहुत से घर जला दिए, तथापि उन्हें हारकर पीछे हटना पड़ा। इतने में मुहणोत नैणसी भी सेना लेकर वहाँ जा पहुँचा । इससे भाटी खेत छोड़कर भाग गए । यह देख राठोड़ सैनिकों ने भी आगे बढ़ जयसलमेर-राज्य में फिर उपद्रव करना और भाटियों से मांडी-गाँव के जलाने का पूरा-पूरा बदला लेना प्रारंभ किया । इसी बीच बीकानेर- नरेश करणसिंहजी जयसलमेर की राजकुमारी से विवाह कर लौटते हुए मार्ग में रुणेचे पहुँचे और उन्होंने बीच में पड़ राठोड़ों और भाटियों के बीच मेल करवा दिया । ३. ख्यातों में वैशाख सुदि ४ को इनका अहमदाबाद पहुँचना लिखा है । ४. आलमगीरनामा, पृ० ३४६ | ५. आलमगीरनामा, पृ० ४०४-४०५ । इस पर वि० सं० १७१६ की श्रावण सुदि ६ ( ई० सन् १६५६ की १५ जुलाई) को महाराज ने भी कुछ ज़वाहिरात और कुछ जड़ाऊ चीजें बादशाह के लिये भेजी थीं । आलमगीरनामा, पृ० ४२० । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat २३१ www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy