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________________ महाराजा जसवंतसिंहजी (प्रथम) था, उनको फिर से छेड़कर नाहक खतरा मोल लेना उचित न समझा । इस प्रकार रणस्थल से लौटकर महाराज सोजत पहुँचे और चार दिन वहाँ ठहरकर जोधपुर चले आए। इसके बाद औरङ्गजेब भी वहाँ से आगे बढ़कर आगरे से ७१ कोस के फासले पर समूगर्दै (फतहाबाद ) के पास पहुँचा । यहाँ पर स्वयं शाहजादे दारा से उसका सामना हुआ । इस युद्ध में दारा की सेना के वाम-पार्व के सेनापति राठोड़ वीर रामसिंह ने अपने प्राणों की परवा छोड़ बड़ी वीरता दिखलाई । उसने शत्रु-सेना की पंक्तियों को चीरकर मुराद को घायल कर दिया और साथ ही जिस हौदे ( अम्बारी ) में मुराद बैठा था, उसका रस्सा काटकर निकट था कि वह उसे हाथी पर से गिरा देता, इतने ही में एक तीर उसके मर्म-स्थान पर आ लगा । इससे वह इस कार्य में सफल होने के पूर्व ही वीरगति को प्राप्त हो गया । इसके बाद दारा के दाहने भाग के सेनापति खलीलउल्लाहखाँ के विश्वासघात से दारा की विजय पराजय में परिणत हो गई । इससे दारा में भी कुछ इसी प्रकार का उल्लेख मिलता है (देखो भा० २, पृ० ४३)। परन्तु हमारी समझ में बर्नियर ने यह कथा राजपूत-वीरांगनाओं की तारीफ़ में सुनी-सुनाई किंवदंतियों के आधार पर ही लिखी है, और 'मुंतम्बबुललुबाब' के लेखक ने हिन्दू-नरेश की वीरता को भुलावे में डालने का उद्योग किया है । वास्तव में न तो स्वाभिभक्त किलेदार सरदार ही रानी के कहने से अपने वीर स्वामी के विरुद्ध ऐसी कार्रवाई कर सकता था, और न इस प्रकार उदयपुर महाराना या बूंदी के राव की रानी ही अपनी पुत्री को समझाने के लिये जोधपुर आ सकती थी । अतः यह कथा विश्वास-योग्य नहीं है । रही महाराज के सम्मुख रण में लोहा लेने की बात । इम विषय में पहले ही फ़ारसी तवारीखों के अवतरण उद्धृत किए जा चुके हैं । १. आलमगीरनामा, पृ० ७३ 'तवारीग्व मुहम्मदशाही' में लिखा है कि जब युद्धस्थल से लौटते हुए महाराज अपने ३०० सवारों के साथ शाहज़ादों की बाई और से बड़े ठाट के साथ निकले, तब सैनिकों के उकसाने पर भी औरङ्गजेब की इन्हें छेड़ने की हिम्मत न हुई । इसके बाद भी वह अक्सर कहा करता था कि-खुदा की मनशा हिन्दुस्थान में मुसलमानी मज़हब कायम रखने की थी, इसी से उस दिन वह ( जसवंतसिंह ) युद्ध से चला गया । यदि ऐसा न हुआ होता, तो मामला कठिन था । कहीं-कहीं इस युद्ध में महाराज की तरफ के करीब ६.००० आदमियों का मारा जाना लिखा है । २. ख्यातों में इनका वि० सं० १७१५ की वैशाख सुदि १ को सोजत पहुँचना लिखा है। ३. ऑक्सफोर्ड हिस्ट्री ऑफ इंडिया, पृ० ४१० । ४. बर्नियर की भारत-यात्रा, भा० १, पृ० ५५-५६ । ५. बर्नियर की भारत-यात्रा, भा० १, पृ० ५५-५७ । २२५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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