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________________ महाराजा जसवंतसिंहजी (प्रथम) ने सेना-संचालन का भार स्वयं लेकर अपने वंश के नायक महाराज को वहाँ से टल जाने पर बाध्य किया । अंत में हाडा मुकनसिंह, सीसोदिया सुजानसिंह, राठोड़ रत्नसिंह, गौड़ अर्जुन, झाला दयालदास और मोहनसिंह आदि वीरों के मारे जाने से खेत औरङ्गजेब के हाथ रहा । राजा रायसिंह सीसोदिया, राजा सुजानसिंह बुंदेला और अमरसिंह चंद्रावत आदि कुछ सरदार औरङ्गजेब के हमले से घबराकर अपनी-अपनी फौजों के साथ अपने-अपने देशों की तरफ भाग निकले । रणस्थल का यह रंग देख महाराज को भी लाचार हो मारवाड़ की तरफ रवाना होना पड़ा । यद्यपि महाराज को १. इस बात की पुष्टि ईशरीदास की लिखी 'फतूहाते आलमगीरी' से भी होती है । उसमें लिखा है: “जसवंतसिंह सम्मुख युद्ध में लड़कर प्राण देना चाहते थे । परन्तु महेशदास, आसकरण आदि उनके प्रधान उनके घोड़े की लगाम पकड़ कर उन्हें बलपूर्वक वहाँ से ले आए (देखो पृ० २१)। मीर मुहम्मद मासूम की लिखी 'तारीखे शाहशुजाई' में 'महाराज का आहत होकर रणस्थल में गिरना और उनके योद्धाओं का उन्हें जबरदस्ती रणस्थल से हटा ले जाना लिखा है (देखो पृ० ५०)। आकिलखाँ अपनी 'वाकयाते आलमगीरी' में लिखता है कि-राजा जसवंतसिंह के दो ज़ख्म लगने पर भी वह बहादुरी के साथ रणस्थल में खड़ा रहकर जहाँ तक हो सका, अपने वीरों को उत्साहित करता रहा ( देखो पृ० ३१)। मनूची ने लिखा है-राजा जसवंत तब तक बराबर वीरता से लड़ता रहा, जब तक उसके अधिकांश योद्धा वीरगति को न प्राप्त हो गए और पीछे बहुत ही थोड़े बच रहे ( देखो भा० १, पृ० २५६)। इन अवतरणों से खाफीखाँ ( मोहम्मद हाशम) के महाराज पर युद्धस्थल से भाग जाने के दोषारोप का स्वयं ही खंडन हो जाता है (मुंतखिबुललुबाब, भा० २, पृ० ४३) । इसी प्रकार आगे दिए बर्नियर के अवतरण से भी खाफीखाँ के इस लेख का खंडन होता है । २. 'आलमगीरनामा', पृ० ७०-७१ । ३. युद्ध का यह इतिहास आलमगीरनामा, सहरुल मुताख़रीन, मासरे आलमगीरी, मारवाड़ की ख्यात और बर्नियर के सफरनामे से लिया गया है। बर्नियर लिखता है कि यद्यपि वह स्वयं इस युद्ध में शरीक नहीं हुआ था, तथापि उसने जो कुछ हाल लिखा है, वह औरंगजेब की तरफ के तोपखाने में काम करने वाले फ्रांसीसियों से सुनकर ही लिखा है । वह लिखता है: "परन्तु शाहजहाँ ने राजा जयसिंह और दिलेरखाँ को शुजा के विरुद्ध भेजते हुए जैसी शिक्षा ( "जहाँ तक बने लड़ाई न की जाय और शुजा को उसके प्रांत को लौट जाने के लिये बाध्य करने में कोई बात न उठा रक्खी जाय-" पृ० ३७) दी थी, वैसी ही सावधानी से काम करने का इनको भी कहा। २२३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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