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________________ महाराजा जसवंतसिंहजी (प्रथम) बहुत से शाही अमीर देपालपुर में पहुँच, बादशाह के विरुद्ध, औरंगजेब से मिल गए । इस पर उसने उन्हें मनसब और खिलअत आदि देकर अपना मार्ग सुगम कर लिया । साथ ही उसने अपने छोटे भाई मुराद को भी बाः शाइत का लालच देकर अपनी सहायता के लिये बुलवाया। इसकी सूचना पाते ही महाराज मुराद को रोकने के लिये उज्जैन से रवाना हुए । खाचरोद से ३ कोस के फ़ासले पर पहुँच जाने पर इनकी और मुराद की सेनाओं के बीच १८ कोस का फासला रह गया । परन्तु उसने अकेले ही महाराज की सेना से मुकाबला करना हानिकारक जान तत्काल अपना मार्ग पलट दिया और यथासंभव दूसरे रास्ते से चलकर औरंगजेब से जा मिलने की कोशिश करने लगा । इसी बीच महाराज ने शाही जासूसों के द्वारा दोनों शाहजादों की गतिविधि जानने का बहुत कुछ प्रयत्न किया; परन्तु औरंगजेब ने नर्मदा के घाटों का पूरी सतर्कता से प्रबन्ध कर रक्खा था । इसलिये शाही जासूसों की अकर्मण्यता या विश्वासघात के कारण महाराज को उसकी सेना का यथार्थ समाचार न मिल सका । इसी बीच देपालपुर के पास मुराद भी उससे जा मिला । इसके बाद महाराज को मांडू के किलेदार राजा सेवाराम के पत्र से ज्ञात हुआ कि औरंगजेब मालवे की तरफ़ आ रहा है और मुरादबख़्श उससे जा मिला है । इस पर यह तत्काल खाचरोद से उसके मुकाबले को चले । इनके उज्जैन पहुँचने तक दोनों शाहज़ादे भी वहाँ से सात कोस के फासले पर धर्मतपुर के पास पहुँच चुके थे । यह देख महाराज ने उससे एक कोस के फासले पर अपने डेरे लगा दिए । इसी वीच चालाक शाहजादे औरंगजेब ने दूत द्वारा महाराज से कहलाया कि हम तो अपने पिता की बीमारी का हाल सुनकर उससे मिलने जाते हैं; ऐसी हालत में आप हमारा मार्ग क्यों रोकते हैं ? परन्तु महाराज ने, जो उसके रंग-ढंग से परिचित थे, उत्तर में लिख भेजा कि यदि आप पिता के कुशल-समाचार पूछने को ही जाना चाहते हैं; तो इतनी बड़ी सेना को साथ ले जाने की क्या आवश्यकता १. 'पालमगीरनामा', पृ० ५५ । २. 'आलमगीरनामा', पृ० ५६-५७ ।-वी० ए० स्मिथ ने लिखा है कि औरंगजेब ने नर्मदा पर की नावों पर अधिकार कर इधर की खबर उधर जाने का मार्ग ही रोक दिया था। इसके बाद ई० सन् १६५८ की ३ अप्रेल (वि० सं० १७१५ की चैत्र सुदि १०) को उसने नर्मदा को पार किया और उज्जैन के पास पहुँचने पर उसकी और मुराद की सेनाएँ आपस में मिल गई। ऑक्सफ़ोर्ड हिस्ट्री ऑफ़ इंडिया, पृ०. ४०६-४१० । ३. 'आलमगीरनामा', पृ० ५८। २२१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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