SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १६६६ की वैशाणा सुदि २ ( ई० स० १६३६ की २५ अप्रैल ) को जब बादशाह लाहौर से आगे बढ़ पेशावर से जाम की तरफ़ रवाना हुआ, तब मार्ग की तंगी के कारण अन्य कई शाही अमीरों के साथ ही महाराज भी पेशावर में ठहर गए । परन्तु चौथे रोज़ अली-मसजिद के मुकाम पर फिर बादशाह से जा मिले' । आश्विन सुदि । ( २५ सितम्बर ) को भी बादशाह ने इन्हें खिलअत और सुनहरी जीन का एक घोड़ा दिया । इसके बाद इसी साल की फागुन सुदि १ ( ई० स० १६४० की २१ फरवरी ) को जिस समय महाराजा अपने देश की तरफ रवाना हुए, उस समय भी बादशाह ने इन्हें खिलअत और सुनहरी जीन का खासा घोड़ा देकर विदा किया । इस पर यह हरद्वार होते हुए वि० सं० १६६७ की ज्येष्ठ सुदि ( ई० स० १६४० की मई ) में जोधपुर पहुँचे । चिरप्रचलित प्रथा के अनुसार यहाँ पर किले में फिर से महाराज के राजतिलक का उत्सव मनाया गया और इस शुभ अवसर पर मारवाड़ के सब उपस्थित सरदारों ने नज़र और निछावर के द्वारा अपने स्वामी का अभिनन्दन कर इनकी अधीनता स्वीकार की। इसके बाद स्वयं महाराजा अपने विश्वास-पात्र सरदारों की सलाह से राज्य का प्रबन्ध देखने लगे । बहुधा यह वेश बदलकर रात्रि में, गुप्त रीति से, नगर-निवासियों के हाल-चाल का निरीक्षण करने को भी निकला करते थे । वि० सं० १६९७ की पौष वदि ५ ( ई० स० १६४० की २३ नवम्बर ) को इनका प्रधानामात्य कुंपावत राजसिंह मर गया । इस पर उसका काम चांपावत १. बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० १४६ । उस दिन तिथि 'सल्ख, ज़िलहिज हि० सन् १०४८ लिखी है । सल्ख से चंद्रदर्शन की तिथि का तात्पर्य होने से ही ऊपर द्वितीया ली गई है। २. बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० १६२ । ३. बादशाहनामा, जिल्द २, पृ० १८१ । इसी समय बादशाह ने इनके प्रधान मंत्री कुंपावत राजसिंह को भी एक खिलअत और जड़ाऊ जमधर देकर इनके साथ विदा किया । ख्यातों में इनका चैत्र वदि ५ को दिल्ली से रवाना होना लिखा है । ४. इनके समय का वि० सं० १६६६ की आषाढ़ सुदि २ (ई० सन् १६३६ की २२ जून) का एक लेख फलोदी से मिला है । ___ जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी, (१६१६ ) पृ० ६६ | ५. ख्यातों में लिखा है कि जिस समय महाराज अर्धरात्रि के करीब नगर में गश्त लगाते हुए तापी बावली के पास पहुंचे, उस समय इन्हें सामने से एक परिचित राज्यकर्मचारी २१२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy