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________________ राजा गजसिंहजी पास बुला लिया । इसके बाद इसी वर्ष की आश्विन सुदि (अक्टोबर ) में बादशाह ने इनको जड़ाऊ पट्टेवाली एक खासी तलवार देकर दक्षिण की तरफ़ भेजा । वहाँ पर भी महाराज की राठोड़-सेना ने बड़ी वीरता दिखलाई । वि० सं० १६८८ के पौष ( ई० सन् १६३१ के दिसम्बर ) में महाराज यमीनुद्दौला ( आसफ़ख़ाँ ) के साथ मोहम्मद आदिलखा को दंड देने के लिये फिर बालाघाट की तरफ़ भेजे गए। हमेशा की तरह इस बार भी यह शाही सेना के अग्रभाग के सेनापति बनाए गएँ। इसके कुछ दिन बाद महाराज जोधपुर चले आए और यहाँ पर राज्यकार्य की देख-भाल करने लगे । वि० सं० १६९० के वैशाख ( ई० सन् १६३३ के मार्च ) में यह फिर जोधपुर से लौट कर आगरे पहुँचे । इस पर बादशाह ने एक खिलअत और एक सुनहरी जीन वाला घोड़ा देकर इनका सत्कार किया । इसके बाद यह फिर दक्षिणियों के उपद्रव को दबाने के लिये उधर चले गएँ । वि० सं० १६१२ की फागुन सुदि १४ (ई० सन् १६३६ की १० मार्च ) को दौलताबाद के मुक़ाम पर बादशाह शाहजहाँ ने इनकी वीरता से प्रसन्न होकर इन्हें सुनहरी जीन सहित एक खासा घोड़ा दिया । इसके बाद वि० सं० १६९३ के पौष (ई० सन् १६३६ के दिसम्बर) में यह बादशाह के साथ दक्षिण से लौटे । मार्ग में जब बादशाह अजमेर से आगरे को चला, तब जोगी तालाब के पास उसने महाराज को, एक खासा खिलअत, एक हाथी और सुनहरी जीन वाला ख़ासा घोड़ा उपहार में देकर, जोधपुर को विदा किया। यहाँ पर यह करीब डेढ़ वर्ष तक अपने राजकाज की जाँच में लगे रहे। इसके १. बादशाहनामा, भा० १, पृ० ३०८। उसमें लिखा है कि इसी वर्ष नसीरखाँ ने, जो गजसिंहजी की सेना में नियत था, बादशाह से तिलंगाना और कंधार की विजय का कार्य अपने ज़िम्मे किए जाने की प्रार्थना की । इससे वह कार्य उसको सौंपा गया और महाराज को वापिस बुला लिया गया | २. 'बादशाहनामा', भा० १, पृ० ३१५ । ३. बादशाहनामा, भा० १, हिस्सा १, पृ० ४०४-४०५ । ४. इस अवसर पर इन्होंने १ हाथी कुछ जवाहिरात, और हथियार बादशाह की भेट किए थे । ('बादशाहनामा', भा० १, पृ० ४७४)। ५. इस सत्कार और यात्रा का उल्लेख फारसी तवारीखों में नहीं है। यह ख्यातों से लिया गया है। ६. 'बादशाहनामा', भा० ५, हिस्सा २, पृ० १४१-१४२ । ७. बादशाहनामा, भा० १, हिस्सा २, पृ० २३३ । २०७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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