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________________ मारवाड़ का इतिहास कर्नल टाड ने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि इस अवसर पर इनको मारवाड़ के अधिकार के साथ ही गुजरात के सात परगने, झिलाय (ढूंढाड़ का) और मसूदा (अजमेर का ) की जागीर और दक्षिण की सूबेदारी दी गई थी । इनके अलावा इनके घोड़े भी शाही दाग से बरी करदिए गए थे । इसके बाद यह महकर के थाने पर पहुँच दक्षिणवालों के उपद्रवों को शांत करने में लग गए । अहमद नगर के बादशाह का मंत्री हबशी अंबर चंपू एक वीर योद्धा था । ख्यातों से ज्ञात होता है कि एक बार उसने, अचानक आकर, शाही सेना को घेर लिया । तीन महीने तक दोनों तरफ से छोटी बड़ी अनेक लड़ाइयाँ होती रही । अंत में गजसिंहजी की वीरता से शत्रु को घिराव उठा कर भागना पड़ा । वि० सं० १६७८ में भी दक्षिणियों के साथ के युद्ध में महाराज की वीरता से ही शाही सेना को विजय प्राप्त हुई, और मलिक अंबर ने आक्रमण करने के बदले आक्रांत होकर बादशाह की अधीनता स्वीकार करली । इससे प्रसन्न होकर बादशाह जहाँगीर ने महाराज का मनसब बढ़ा कर चार हज़ारी जात और तीन हजार सवारों का कर दियाँ । साथ ही इन्हें 'दलथंभन' (फ़ौज का रोकने वाला ) का ख़िताब देकर जालोर का परगना मनसब की जागीर में दिया । १. 'ऐनाल्स ऐंड ऐण्टिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान' (क्रुक संपादित), भा॰ २, पृ० ६७२ । २. उस समय दक्षिण का सूबेदार खाँखानाँ था । इसलिये कर्नल टाड के लेखानुसार महाराज ___ को दक्षिण की सूबेदारी का दिया जाना ठीक प्रतीत नहीं होता। ३. महकर में मुग़ल-राज्य की सरहदी चौकी थी, और वहां से आगे अहमदनगर वालों का राज्य प्रारंभ होता था । उन दिनों इन्हीं अहमदनगर वालों से युद्ध होते रहते थे । ४. 'तुजुक जहाँगीरी', पृ० ३४१ । ५. ख्यातों में लिखा है कि उस समय वहाँ पर शाहज़ादे खरम का अधिकार था। उसके सैनिकों ने महाराज के आदमियों को किला सौंपने से इनकार करदिया । इसके बाद जिस समय बादशाह ने शाहज़ादे खर्रम को दक्षिण से माँडू की तरफ जाकर वहाँ के उपद्रव को शांत करने की आज्ञा दी, उस समय राजा गजसिंहजी को भी उसकी सहायता के लिये वहाँ जाने को लिखा । इसके अनुसार जब महाराज शाहज़ादे के पास बुरहानपुर पहुँचे, तब उसने इनको प्रसन्न करने के लिये जालोर के साथ ही साँचोर का परगना भी इन्हें दे दिया । परन्तु फारसी इतिहासों से इसकी पुष्टि नहीं होती। २०० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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