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________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १६७० ( ई० सन् १६१३ ) में महाराज अजमेर गए । उस समय बादशाह जहाँगीर का निवास वहीं था । कुछ ही दिनों बाद उसने महाराज को शाहजादे खुर्रम ( शाहजहाँ ) की सहायता के लिये मेवाड़ की तरफ़ भेज दियो । शाहजादे ने भी इनकी सलाह से मेवाड़ के चारों तरफ़ अपनी सेना के थाने डलवा दिए । इनमें से सादड़ी का थाना राजकुमार गजसिंहजी को सौंपा गया । इस प्रकार चारों तरफ़ से घिर जाने के कारण वि० सं० १६७१ ( ई० सन् १६१४ ) में महाराना अमरसिंहजी ने युद्ध में सफलता का होना असंभव देख शाहजादे के पास संधि का प्रस्ताव भेज दिया । इस पर बादशाह की स्वीकृति मिल जाने और अन्य सब बातों के तय हो जाने पर, जिस समय महाराना स्वयं अपने परिजनों के साथ शाहजादे से मिलने के लिये गोगूँदे आए, उस समय महाराज भी शाही अमीरों को साथ लेकर महाराना के पास पहुँचे । साथ ही इन्होंने मामले के तय करने में भी उन्हें सहायता दी । १. बादशाहनामा, भा० १, पृष्ठ १६६ | 'मासिरुल उमरा', ( भा० २, पृष्ठ १८२ ) में इनका जहांगीर के राज्य के आठवें वर्ष शाहज़ादे खुर्रम के साथ मेवाड़ पर चढ़ाई करना और बाद में उसी के साथ दक्षिण की तरफ़ जाना लिखा । जहांगीर का आठवां राज्यवर्ष वि० सं० १६६६ की चैत्र वदि ३० ( ई० स० १६१३ की ११ मार्च) को प्रारंभ हुआ था । 'तुजुक जहांगीरी' में मेवाड़ पर की चढ़ाई का समय वि० सं० १६७० ( ई० स० १६१३ ) और दक्षिण की तरफ़ जाने का वि० सं० १६७३ ( ई० स० १६१६ ) लिखा है । (देखो क्रमशः पृ० १२६ और १६७)। २. बादशाहनामा, भा० १, पृ० १७१-१७२ । यह घटना फागुन बदी २ ( ई० स० १६१५ की ५ फ़रवरी) की है । ३. संधि के समय महाराना अमरसिंहजी ने एक लाल बादशाह को भेट किया । उसका तोल टांक और कीमत ६०,००० रुपए थी । 'तुजुकजहांगीरी' में लिखा है कि यह पहले राव मालदेव के पास थी। मालदेव राठोड़ों का सरदार और उमदा (श्रेष्ठ) राजाओं में था । उसके बाद यह (लाल ) उसके पुत्र राव चन्द्रसेन के हाथ आया । उसी ने राज्य छूट जाने पर इसे क़ीमत लेकर राना उदयसिंह को दे दिया ( देखो पृ० १४१ ) । 'गुणरूपक' में लिखा है कि बादशाह जहांगीर एक बड़ी सेना लेकर मेवाड़ का दमन करने के लिये अजमेर गया । परंतु जब महाराना अमरसिंहजी ने वीरता के साथ शाही सेना का मुकाबला किया, तब उसने राजा शूरसिंहजी को वहां आने को लिखा । इस पर महाराज ने मेवाड़ पहुँच महाराना को संधि करने के लिये तैयार किया। इसी बीच पिता के बुलाने से राजकुमार गजसिंहजी भी भाटी १६० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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