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________________ मारवाड़ का इतिहास बादशाह ने शाहजादे को उसे दण्ड देने के लिये जाने की आज्ञा दी । उस समय राजा शूरसिंहजी भी उसके साथ थे। वि० सं० १६५८ ( ई० सन् १६०१ ) में महाराज फिर शाही सेना और अबुलफजल के साथ राजू को दण्ड देने और अहमदनगर को विजय करने के लिये भेजे गए । इन दोनों बार के युद्धों में इन्होंने बड़ी वीरता दिखाई थी । ___ इन्हीं दिनों हब्शी खुदावंदखाँ ने पाथरी और पालम के प्रांतों में उपद्रव शुरू कर दिया था । जब इसकी सूचना खॉन-खानान् को मिली तब उसने राजा शूरसिंहजी को शाही सेना देकर उसको दबाने के लिये रवाना किया। इस पर महाराज ने खुदावंदखाँ को हराकर वहाँ पर फिर से शांति स्थापित की। ___ वहाँ से लौटकर यह निजामुलमुल्क के सेनापति अम्बरचम्पू के मुकाबले को चले। यह देख वह कंधार की तरफ बढ़ने लगा। उसी अवसर पर हब्शी फरहाद भी अपने दो-तीन हजार सवारों को लेकर उससे आ मिला । उस समय राजा शूरसिंहजी शाही सेना के अग्रभाग (हरावल ) में थे। इसलिये इनके अंबर की सेना के सामने पहुंचते ही पहले तो उसने बड़ी बहादुरी से इनका सामना किया । परन्तु फिर शीघ्र ही उसके पैर उखड़ गए और उसे रणस्थल से भागकर अपनी जान बचानी पड़ी। यह घटना वि० सं० १६५६ ( ई० सन् १६०२ ) की है। अबुलफजल ने इस विषय में लिखा है किः__ इस युद्ध में जैसी वीरता बादशाही सेना के अग्रभाग और मध्यभाग वालों ने दिखलाई थी वैसी ही वीरता अगर वाम और दक्षिण भाग वाले भी दिखलाते तो अंबर और फरहाद का भागना असम्भव हो जाता और वे पकड़ लिए जाते । इस युद्ध में के महाराज के वीरता-पूर्ण कार्यों को देख कर स्वयं शाहजादा दानियाल इतना प्रसन्न हुआ कि उसने बादशाह को भी पत्र द्वारा इसकी सूचना लिख भेजी । इसपर बादशाह ने इन्हें एक शाही नवकारा उपहार में दियो । साथ १. अकबरनामा, भा० ३, पृ० ८०१ । २. अकबरनामा, भा० ३, पृ० ८०६ । ३. अकबरनामा, भा० ३, पृ. ८०७ । ४. मासिरुल उमरा, भा० २ पृ० १८२ । ५. अकबरनामा, भा० ३, पृ० ८१६ ।। १८४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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