SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजा उदयसिंहजी विक्रम संवत् १६४१ ( ई० स० १५८४ ) में बादशाहने सोजत का प्रान्त भी उदयसिंहजी को देदिया । इसी वर्ष सैयद दौलतखाँ ने खंभात पर अधिकार कर लिया । इस पर अकबर की आज्ञा से अनेक सरदारों और अमीरों ने मिलकर उस पर चढ़ाई की । उस समय मोटा - राजा उदयसिंहजी भी उनके साथ थे । इन्होंने वहाँ पर सैयद को दबाने में बड़ी वीरता दिखलाई' । विक्रम संवत् १६४३ ( ई० स० १५८६ ) में राजा उदयसिंहजी ने सींधलवाटी ( जालोर - प्रान्त में ) पर चढ़ाई की, और वहाँ के सींधल राठोड़ों को हराकर उनके गांवों को लूट लिया 1 १. यह प्रान्त पहले राव रायसिंहजी के अधिकार में था, और उनकी मृत्यु के बाद वहाँ पर उनके परिजन रहा करते थे । परन्तु जब यह परगना उदयसिंहजी को सौंप दिया गया, तब वे सब जोधपुर चले आए। २. अकबरनामा, दफ्तर ३, पृ० ४३६-४३७ | मारवाड़ की ख्यातों में लिखा है कि इसी वर्ष इन्होंने सीसोदिया जगमाल और राव रायसिंह का बदला लेने के लिये शाही सेना के साथ सिरोही पर भी चढ़ाई की थी । परन्तु राव सुरतान ने दण्ड के रुपये देकर इन लोगों से क्षमा मांग ली । इस चढ़ाई का वर्णन 'सिरोही के इतिहास' में नहीं दिया गया है । ३. ख्यातों में लिखा है कि जिस समय सोजत पर राव मालदेवजी के पुत्र राम और पौत्र कल्ला ( कल्याण ) का अधिकार था, उस समय उन्होंने उस प्रान्त के कई गाँव चारणों को दान में दिए थे। परन्तु वहाँ पर राजा उदयसिंहजी का अधिकार हो जाने के बाद एक बार जब इनकी रानियाँ सिवाने की तरफ गई, तब मार्ग में चारणों के बाड़े के पास पहुँचने पर उनके रथ के बैल थक गए । यह देख साथ के मनुष्यों ने एक चारण के बैल पकड़ कर रथ में जोत लिए । इसपर उस चारण ने बड़ा उपद्रव मचाया और रथ 'के साथ वालों के मना करने पर भी अपने बैल खोल कर ले गया। इस घटना का हाल सुन कर राजा उदयसिंहजी चारणों से नाराज़ हो गए। इसलिये विक्रम संवत् १६४३ ( ई० सन् १५८६ ) में इन्होंने चारणों के कई गाँव ज़ब्त कर लिए। इस पर पहले तो उन लोगों ने मिल कर महाराज से बहुत कुछ अनुनय-विनय की । परन्तु जब इससे काम नहीं चला, तब उन्होंने जोधपुर में एकत्रित होकर अनशन व्रत ले लिया । यह बात महाराज को और भी बुरी लगी । इससे इन्होंने उन लोगों को जोधपुर से निकलवा दिया । इस प्रकार खदेड़ दिए जाने पर वे लोग पाली के ठाकुर चाँपावत गोपालदास के पास पहुँचे और उसे अपना सारा हाल सुनाकर महाराज को समझाने के लिये भेजा । १७३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy