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________________ मारवाड़ का इतिहास स्थिति और विस्तार यह देशं राजपूताने के पश्चिमी भाग में है और इसका विस्तार यहां के सब राज्यों से अधिक है । इसकी लंबाई ईशानकोण से नैर्ऋत्यकोण तक ३२० मील और चौड़ाई उत्तर से दक्षिण तक १७० मील है । इसके पूर्व में जयपुर, किशनगढ़ और अजमेर; अग्निकोण में मेरवाड़ा और उदयपुर ( मेवाड़ ); दक्षिण में सिरोही और पालनपुर; नैर्ऋत्यकोण में कच्छ का रण; पश्चिम में थरपाकर और सिंध; वायव्यकोण में जैसलमेर तथा उत्तर में बीकानेर और ईशानकोण में शेखावाटी है । यद्यपि अाजकल यह देश २४ अंश ३६ कला उत्तर अक्षांश से लेकर २७ अंश ४२ कला उत्तर अक्षांश तक; तथा ७० अंश ६ कला पूर्व देशांतर से लेकर ७५ अंश २४ कला पूर्व देशांतर तक फैला हुआ है, और इसका क्षेत्रफल ३५०१६ वर्गमील है, तथापि कर्नल टॉड के मतानुसार किसी समय मरुदेश का विस्तार समुद्र से सतलज १. कुछ लोग "मरु" और "माड़" देशों के नामों के मिलने से "मारवाड़" नामकी उत्पत्ति होना अनुमान करते हैं । 'माड़' जैसलमेर के पूर्वी भाग का नाम है और यह मरुदेश के पश्चिमी भाग से मिला हुआ है। उन के मतानुसार कालान्तर में इसी 'माड़' शब्द का 'वाड़' के रूप में परिवर्तन होगया है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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