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________________ मारवाड़ का इतिहास इस मौके से लाभ उठाकर अपने बैरी शिमालखाँ को मारना चाहता था, तथापि जल्दी में उसके बदले जलालखा के डेरे पर ही नारकाट शुरू हो गई । इसी में जलालखाँ मारा गया। इसके बाद ये लोग शिमालखाँ के डेरे की तरफ़ बढ़े । परन्तु इसी बीच बहुत-से शाही सैनिकों के साथ जयमल वहाँ आ पहुँचा । यह देख चन्द्रसेनजी और देवीदास अपने दलबल के साथ शाही सेना से निकल वापस लौट गए। ___ इस घटना से शाही सेना का बल और भी टूट गया । यह देख वीरवर कल्ला देवकोरे के किले में चला आया और आसपास के राजपूतों को एकत्रित कर शाही सेना से एक बार फिर युद्ध करने की तैयारी करने लगा । इससे उस सेना के मार्ग में एक नवीन बाधा उठ खड़ी हुई और वह लाचारी के कारण सिवाने की तरफ का ध्यान छोड़ देवकोर के किले पर आक्रमण करने में लग गई । जैसे ही यह वृत्तांत अकबर को मिला, वैसे ही उसने अपनी प्रतिष्ठा को इस प्रकार संकट में पड़ी देख शाहबाज़खाँ को उस तरफ़ की अराजकता मिटाने के लिये रवाना किया । देवकोर के पास पहुँचने पर उसने देखा कि वहाँ की शाही सेना किले को घेर कर असफल आक्रमणों में लगी हुई है, अतः शाहबाज ने आगे बढ़ एकाएक किले पर चढ़ाई करदी । इससे शाही सेना का बल बहुत बढ़ गया । वीर कल्ला के अल्पसंख्यक थके-माँदे योद्धा कब तक उसका मुकाबला कर सकते थे । अंत में किला मुग़लों के हाथ लगा । इस प्रकार देवकोर से निपट कर शाहबाज़ ने किले की रक्षा के लिये थोड़ी-सी सेना के साथ कुछ बाराह के सैय्यदों को वहां छोड़ा और बाकी फौज को लेकर सिवाने की तरफ़ प्रयाण किया । वहाँ से आगे बढ़ने पर ये लोग दूनाडा में पहुँचे । वहाँ के किले में भी कुछ राठोड़ वीर एकत्रित थे। अतः मुगल सेनापति ने इनसे शाही सेवा अंगीकार करने का प्रस्ताव किया । परन्तु वीर राठोडों ने स्वाधीनता छोड़ने के बजाय प्राण दे देना ही उचित समझा और इस प्रस्ताव को मानने से साफ इनकार कर दिया । इस पर दोनों तरफ से युद्ध आरंभ हो गया । वीर योद्धा एक दूसरे से आगे बढ़-बढ़ कर वीरता दिखाने लगे । परन्तु कुछ ही काल १. अकबरनामे (भा० ३, पृ० १५६ ) में जयमल और किसी-किसी ख्यात में मेड़तिया जगमाल लिखा है। २. अकबरनामा, भा० ३, पृ० १६७; परन्तु देवकोर के किले का कुछ पता नहीं चलता। ३. दूनाडे में इस समय किला विद्यमान नहीं है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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