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________________ मारवाड़ का इतिहास अगले वर्ष (वि० सं० १६३० ई० सन् १५७३ में ) अजमेर-प्रांत के भिनाय नामक गाँव की प्रजा ने मादलिया नामक भील के उपद्रव से तंग आकर चन्द्रसेनजी से सहायता चाही । इन्होंने भी मौका देख उस पर चढ़ाई कर दी । जिस समय यह वहाँ पहुँचे, उस समय मादलिया के यहाँ उत्सव होने के कारण बहुत से आसपास के भील भी वहाँ एकत्रित थे । इसलिये उन सबने शस्त्र सम्हालकर इनका सामना किया । परन्तु कुछ काल में ही मादलिया के मारे जाने पर सारे भील भाग खड़े हुएं और वहाँ पर चन्द्रसेनजी का अधिकार हो गया। इसी वर्ष (वि० सं० १६३०=हि० सन् १८१ में ) अकबर ने सिवाने पर भी एक मजबूत सेना भेज दी । इसमें शाहकुलीखाँ आदि मुसलमान सेनानायकों के साथ ही बीकानेर के राव रायसिंहजी, केशवदास मेड़तिया (जयमल का पुत्र ), जगतराय आदि हिन्दू-नरेश और सामंत भी थे । बादशाह की बड़ी इच्छा थी कि किसी तरह राव चन्द्रसेन शाही अधीनता स्वीकार करले । इसी से उसने अपने सेनानायकों को समझा दिया था कि यदि हो सके, तो बादशाही कृपा का प्रलोभन दिखलाकर चन्द्रसेन को वश में करने की कोशिश की जाय । यह सेना पहले पहल सोजत की तरफ़ गई और वहाँ पर इसने चन्द्रसेनजी के भतीजे (राव मालदेवजी के पौत्र ) कल्ला परंतु अकबरनामे में इस घटना का हि० स० ६७८ (ई० स० १५७० ) में होना लिखा है । ( देखो, भा॰ २, पृ० ३५७-३५८) १. उसी दिन से मारवाड़ में यह कहावत चली है "मादलियो मारियो ने गोठ बीखरी" अर्थात्-सरदार (मादलिया) को मारते ही उत्सव में एकत्रित हुए लोग भाग खड़े हुए। अभी तक भिनाय में चंद्रसेनजी के वंशजों का अधिकार है। 'चीफ्स् एंड लीडिंग फेमीलीज़ इन राजपूताना' में लिखा है कि इस प्रकार मादलिया भील को मारकर उसका उपद्रव शांत कर देने से अकबर चंद्रसेनजी से बहुत प्रसन्न हुआ और उसने सात परगनों सहित भिनाय का प्रांत इन्हीं को दे दिया। परंतु यह लेख भ्रम पूर्ण है; क्योंकि चंद्रसेनजी के बादशाही अधीनता स्वीकार न करने के कारण ही शाही सेना उनके पीछे लगी रहती थी। 'तारीखे पालनपुर' में मादलिया भील को चंद्रसेनजी का सहायक लिखा है । उसमें यह भी लिखा है कि चंद्रसेनजी के पौत्र कर्मसेन ने मादलिया को मारकर मिनाय पर अधिकार किया था। (देखो, जिल्द १, पृ० ७६) २. अकबरनामा, भा० ३, पृ०८०-८१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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