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________________ मारवाड़ का इतिहास २०. राव चन्द्रसेनजी यह मारवाड़ नरेश राव मालदेवजी के छठे पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १५१८ की सावन-वदि ८ (ई० सन् १५४१ की १६ जुलाई ) को हुआ था। राव मालदेवजी के देहांत के बाद उन्हीं की इच्छानुसार वि० सं० १६१६ की मंगसिर-वदि १ ( ई० स० १५६२ की ११ नवंबर) को यह जोधपुर की गद्दी पर बैठे। इनके राज्य पर बैठने के कुछ दिन बाद ही एक साधारणसी घटना के कारण कुछ सरदार इनसे अप्रसन्न हो गए और उन्होंने राव चन्द्रसेनजी के तीनों बड़े भाइयों के पास गुप्त पत्र भेज कर उन्हें जोधपुर-राज्य पर अधिकार करने को उकसाना प्रारंभ किया। इससे इनके सबसे बड़े भाई राम ने सोजत और दूसरे भाई रायमल्ल ने दूनाडा-प्रांत में उपद्रव शुरू किया, तथा तीसरे भाई उदयसिंह जी ने अचानक आकर गांगाणी और बावड़ी पर अधिकार कर लिया । यह सूचना पाते ही राव चन्द्रसेनजी ने उदयसिंहजी पर चढ़ाई की । इस पर उदयसिंहजी नवाधिकृत प्रदेश को छोड़ फलोदी की तरफ़ लौट चले । परन्तु लोहावट में पहुँचते-पहुँचते दोनों सेनाओं का सामना हो गया और वहाँ के युद्ध में चन्द्रसेनजी की तलवार से उदयसिंहजी के घायल हो जाने के कारण विजय चन्द्रसेनजी के ही हाथ रही । इसके बाद एक बार तो चन्द्रसेनजी जोधपुर चले आए, परन्तु फिर शीघ्र ही इन्होंने सेना लेकर फलोदी पर १. वि० सं० १६०० (ई० स० १५४३ ) में ही राव मालदेवजी ने इन्हें बीसलपुर और सिवाना जागीर में दे दिया था। इसलिये बड़े होने पर यह अधिकतर वहीं रहा करते थे। पिता के देहान्त की सूचना पाते ही यह वहां से दूसरे दिन जोधपुर पहुँच गए और पिता की इच्छानुसार राज्याधिकार प्राप्त कर लेने पर इन्होंने अपनी सिवाने की जागीर अपने बड़े भाई रायमल को दे दी । यह रायमल्ल मालदेवजी का द्वितीय पुत्र था । २. एक बार राव चंद्रसेनजी का एक अपराधी दास भागकर (जैसा के पुत्र) जैतमाल के पास चला गया था। परंतु रावजी ने अपने आदमी भेजकर उसको पकड़वा मँगवाया । इस पर जैतमाल ने कहलाया कि आप इसे जहां तक हो, प्राणदंड न देकर अन्य किसी प्रकार के दंड की आज्ञा दें। इस हस्तक्षेप से राव चंद्रनजी और भी नाराज़ हो गए और उस दास को तत्काल प्राणदंड देने की आज्ञा दे दी । इसी से जैतमाल और उससे मेल रखनेवाले कुछ अन्य सरदार इनसे अप्रसन्न हो गए थे। ३. उस समय राव चंद्रसेनजी के तीनों बड़े भाइयों में सबसे बड़ा भाई राम अपनी जागीर ग्दोच में, दूसरा रायमल सिवाने में और तीसरा उदयसिंह फलोदी में था। १४८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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