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________________ रावमालदेवजी ख्यातों से ज्ञात होता है कि वि० सं० १६०५ (ई० सन् १५४८) में रावजी की आज्ञा से जैतावत राठोड़ पृथ्वीराज ने फिर मुसलमानों को भगाकर अजमेर पर अधिकार कर लिया था। यह देख महाराना उदयसिंहजी ने उसे इनसे छीन लेने के लिये अपनी सेना रवाना की । परन्तु युद्ध में हारकर उसे लौटना पड़ा। वि० सं० १६०७ (ई० सन् १५५०) में मालदेवजी ने राठोड़ नगा और बीदा को सेना देकर पौकरण पर अधिकार करने के लिये भेजा । उस समय वहाँ पर जैतमाले का अधिकार था । यद्यपि उसने भी रावजी की सेना का सामना करने में कोई कसर उठा न रक्खी, तथापि अंत में वहाँ पर मालदेवजी का अधिकार हो गया और जैतमाल कैद कर लिया गया। परन्तु जब कुछ ही समय बाद उसे छुटकारा मिला, तब फिर उसने अपने श्वसुर जैसलमेर के रावल मालदेवजी की सहायता से फलोदी पर अधिकार कर लियौ । इसकी सूचना पाने पर स्वयं राव मालदेवजी ने फलोदी पर चढ़ाई की । यद्यपि जैतमाल के सहायक भाटियों ने फलोदी की रक्षा का बहुत कुछ उद्योग किया, तथापि राठोड़ वीरों के सामने उन्हें भागना पड़ा और वहाँ पर फिर मालदेवजी का अधिकार हो गया। जिस समय ये भागे हुए भाटी मार्ग में बाहड़मेर के पास पहुँचे, उस समय इनकी विशृंखलित दशा को देख वहाँ के रावत भीम ने इनके १,००० ऊँट पकड़ लिए । परन्तु रावजी की आज्ञा के अनुसार कुछ ही दिन बाद राठोड़ जैसा और जैतावत पृथ्वीराज ने आकर भीम से वे ऊँट छीन लिए । इस अवसर पर रावत भीम स्वयं भी पृथ्वीराज के हाथ से घायल होकर पकड़ा गया । परन्तु रावजी के पास लाए जाने पर इन्होंने उसे छोड़ दिया और पृथ्वीराज की वीरता से प्रसन्न होकर उसे अपने सेनापति का पद दिया । परन्तु रावत भीम ने इस अपमान का बदला लेने के लिये बाहड़मेर पहुँचते ही मालदेवजी के राज्य में उपद्रव शुरू कर दिया । यह देख वि० सं० १६०१ (ई० सन् १५५२ ) में रावजी ने राठोड़ रतनसी और सिंघण को सेना देकर बाहड़मेर पर अधिकार कर लेने की आज्ञा दी । इसी के अनुसार उन्होंने वहाँ पहुँच बाहड़मेर और १. ये बाला राठोड़ भारमल के पुत्र थे। २. यह राव सूजाजी के पुत्र नरा का पौत्र और गोविंददास का पुत्र था। तथा समय-समय पर मालदेवजी के राज्य में लूटमार किया करता था। इसी से यह चढ़ाई की गई थी। ३. कहीं-कहीं पर पूंगल के भाटी जैसा का भी फलोदी पर चढ़ाई करना और हारकर लौटना लिखा मिलता है। १३३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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